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कौन सी बात थी जो बनी थी चौरीचौरा कांड की वजह -
गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने चौरी चौरा क़स्बे में 4 फ़रवरी 1922 को एक बैठक की. बैठक के बाद मुंडेरा बाजार से जुलूस निकालने का फैसला किया गया. जिस समय सत्याग्रहियों का जुलूस चौरी चौरा थाने के सामने से होकर गुज़र रहा था तब उस वक़्त के तत्कालीन थानेदार (गुप्तेश्वर सिंह) ने जुलूस को अवैध करार दिया और पुलिसकर्मियों को बलपूर्वक जुलूस को रोकने का आदेश दिया. आन्दोलनकारियों ने जब इसका विरोध किया तो उनके और पुलिसकर्मियों के बीच झड़प हो गयी. इसके बाद पुलिस ने भीड़ पर गोलियां चला दी जिससे 11 सत्याग्रही शहीद हो गए और कई घायल हो गए. फायरिंग की इस घटना से भीड़ में आक्रोश भर गया. इधर दूसरी तरफ पुलिसकर्मियों की गोलियां भी ख़तम हो गयी थीं. जिसके बाद पुलिसकर्मियों के द्वारा की गई हिंसा से क्रोधित और आक्रोशित प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने उन्हें दौड़ा दिया. पुलिसकर्मी थाने की ओर भागे और दरवाज़ा बंद करके अन्दर छिप गए. अपने साथियों की हत्या से क्रुद्ध आन्दोलनकारियों ने सूखी लकड़ियों और केरोसिन तेल की मदद से थाने में आग लगा दी. इस आग में झुलस कर 22 पुलिसकर्मियों की मौत हो गयी. इस अग्नि कांड में पुलिस का एक सिपाही मुहम्मद सिद्दिकी बच कर भाग निकला और गोरखपुर के तत्कालीन कलेक्टर को उसने इस घटना की सूचना दी.
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महात्मा गाँधी को असहयोग आन्दोलन वापस क्यों लेना पड़ा था -
अग्निकाण्ड की घटना की सूचना मिलने के बाद 12 फ़रवरी 1922 को बारदोली में कांग्रेस की बैठक में महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया. इस घटना का ज़िक्र करते हुए गाँधीजी ने अपने लेख "चौरी चौरा का अपराध" में लिखा कि अगर यह आन्दोलन वापस नहीं लिया जाता तो ऐसी ही घटनाएँ दूसरी जगहों पर भी होतीं. गांधीजी ने इस घटना के लिए पुलिस वालों को ज़िम्मेदार ठहराया. क्योंकि अगर पुलिस ने बेवजह फायरिंग नहीं की होती तो भीड़ ने भी ऐसा कदम नहीं उठाया होता. वहीँ दूसरी तरफ बापू ने घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने की अपील की. इसी घटना के कारण मार्च 1922 में गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया था. उन पर राजद्रोह का मुकदमा चला था और उन्हें 6 वर्षों की सजा सुनाई गयी थी.
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