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आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर आज हम जानेंगे 10 ऐसी महिला क्रान्तिकारियों के बारे में जिनके नाम भले हीं किसी किताबों में दर्ज़ नहीं हैं परन्तु स्वतन्त्रता संग्राम में इनके योगदान को कतई अनदेखा नहीं किया जा सकता. आइए जानते हैं देश की आज़ादी के इन 10 दीवानियों के बारे में – अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं
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1. बेगम हज़रत महल
बेगम हज़रत महल लखनऊ और अवध के नवाब वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी थी. साल 1856 में अंग्रेजों ने वाजिद अली शाह की लखनऊ रियासत पर कब्जा कर लिया और शाह को निर्वासित करके कलकत्ता भेज दिया. अपने शौहर के निर्वासन के बाद भी बेगम ने अवध की रियासत पर हकूमत बरक़रार रखा. बेगम ने लखनऊ में 1857 की क्रांति का नेतृत्व किया था. और साल 1857 से साल 1858 तक राजा जयलाल सिंह की अगुवाई में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी. आखिरकार बेगम ने लखनऊ पर फिर से क़ब्ज़ा करके अपने नाबालिग बेटे बिरजिस क़द्र को अवध का वली (शासक) घोषित कर दिया और खुद अंग्रेज़ी सेना के साथ पुरजोर मुक़ाबला किया था. बेगम में संगठन की अभूतपूर्व क्षमता थी और उन्होंने अवध के ज़मींदारों, किसानों और सैनिकों को एकजुट कर अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी थी.
अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान अपने जांबाज़ सिपाहियों के साथ बेगम ने खुद भी हाथी पर सवार होकर दिन-रात युद्ध किया था. बेगम ने अवध के गाँव देहातों में जाकर क्रांति की चिंगारी सुलगाई और महिला सैनिक दल तैयार किया. फ़ौजी भेष वाली इन महिला सैनिकों को बेगम हज़रत महल ने तोप और बन्दूक चलाना सिखाया. रहीमी की अगुवाई में इन महिलाओं ने अंग्रेज़ों से जमकर लोहा लिया था. बेगम हज़रत महल, अवध की बेगम के नाम से भी मशहूर हैं.
2. हैदरीबाई
लखनऊ की तवायफ़ हैदरीबाई के कोठे पर तमाम अंग्रेज़ अफ़सर आया करते थे और वे भारतीय क्रांतिकारियों के ख़िलाफ़ योजनाएँ बनाया करते थे. हैदरीबाई अपने पेशे से पृथक हट कर अपनी देशभक्ति की भूमिका को दिलो जान से निभाया करती थी और ब्रिटिश ऑफिसर्स की इन सभी महत्त्वपूर्ण सूचनाओं को चुपचाप भारतीय क्रांतिकारियों तक पहुँचा दिया करती थी. बाद में तवायफ़ हैदरीबाई भी बेगम हज़रत महल के रहीमी के सैनिक दल में शामिल हो गयी थी और अंग्रेजों से दो दो हाथ किए थे.
3. अरुणा आसफ अली
अरुणा आसफ अली का जन्म 16 जुलाई साल 1909 को अविभाजित पंजाब के कालका नामक स्थान एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था. वे रवीन्द्रनाथ टैगोर के परिवार से संबंधित थीं. साल 1928 में उन्होंने समाज की रूढ़ियों से परे जाकर मुस्लिम कांग्रेसी नेता आसफ अली से शादी कर ली और अरुणा गाँगुली से अरुणा आसफ अली बन गयी. आसफ अली अमेरिका में भारत के प्रथम राजदूत थे. साल 1930 तथा साल 1932 में अरुणा सविनय अवज्ञा आंदोलन में जेल भी भेजी गई थी. साल 1940 में महात्मा गांधी के व्यक्तिगत सत्याग्रह के आह्वान पर भी अरुणा जेल गई थी. मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की गिरफ्तारी के बाद अगस्त क्रांति आंदोलन का भार अरुणा ने अपने कंधों पर उठाया था. वर्ष 1958 में अरुणा दिल्ली की पहली महिला मेयर चुनी गई. मेयर रहते हुए उन्होंने लोक प्रशासन में बहुत से सुधार किए.
4. मातंगिनी हाज़रा
मातंगिनी हाज़रा का जन्म 19 अक्टूबर 1870 को तमलुक के पास होगला नामक गाँव में हुआ था. एक गरीब किसान की बेटी मातंगिनी का विवाह मात्र 12 साल की उम्र में एक 62 साल के विधुर से कर दिया गया. विवाह के 6 साल बाद मातंगिनी विधवा हो गयी. 1930 में मातंगिनी ने सविनव अवज्ञा आन्दोलन में भाग लिया तथा नमक पर कर का विरोध करने को लेकर ब्रिटिश सरकार द्वारा उसे 6 महीने के लिए बहरामपुर जेल में कैद करके रखा गया. रिहाई के बाद मातंगिनी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सक्रिय सदस्य बन गयी. 1933 में उनपर लाठी चार्ज हुआ. 1942 कि क्रान्ति में भी उन्होंने भाग लिया और अंग्रेजों की कोपभाजन बनी. इसी क्रांति में महिलाओं के एक जुलूस का नेतृत्व करती मातंगिनी जब हाथों में तिरंगा लिए ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ नारे लगा रही थी तो ब्रिटिश फौजियों ने मातंगिनी के दोनों हाथों में गोली मार दी थी पर मातंगिनी हाज़रा ने तिरंगे को गिरने नहीं दिया तब फौजियों में मातंगिनी हाज़रा के माथे पर गोली मार कर उनकी जान ले ली.
5. तारा रानी श्रीवास्तव
तारा रानी श्रीवास्तव का जन्म बिहार में पटना के पास सारण नामक स्थान पर हुआ था. कम उम्र में हीं तारा की शादी स्वतन्त्रता सेनानी फुलेंदु बाबू से कर दी गयी थी. देश को आज़ादी दिलाने के लिए तारा रानी श्रीवास्तव अपने पति के साथ कदम से कदम मिला कर चलती रही. महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 12 अगस्त 1942 को एक बड़े जनसैलाब के साथ सिवान थाने की ओर नारे बाज़ी करते हुए बढ़ने के दौरान पुलिस ने भीड़ पर अन्धाधुन्ध लाठियाँ और गोलियाँ बरसाई. तारा के पति फुलेंदु पुलिस की गोली से घायल हो गए. तारा ने अपने पति के घावों पर पट्टी बाँधी और वापस मुड़ कर पुलिस स्टेशन की तरफ चल दी. उसने वहाँ तिरंगा फहराया और फिर अपने पति के पास वापस लौट आई. परन्तु तब तक फुलेंदु बाबू का देहान्त हो चुका था. इसके बाद भी 15 अगस्त 1947 यानि देश की आज़ादी तक तारा महात्मा गाँधी के साथ आन्दोलनों में शामिल रही.
6. भीकाजी कामा
भीकाजी कामा ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी. साल 1907 में भीकाजी कामा ने इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस स्टुटगार्ट ज़र्मनी में भारत का झंडा फहराया था. भले हीं लोग उनके बारे में ज्यादा नहीं जानते पर देश में कई स्थानों पर उनके नाम पर कई सड़कें और भवन हैं. उन्होंने अपनी संपत्ति का एक बहुत बड़ा हिस्सा लड़कियों के लिए अनाथालय बनवाने के लिए दान कर दिया था.
7. पांडुरंग महादेव बापट
पांडुरंग महादेव बापट का जन्म 12 नवम्बर 1880 को हुआ था. वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक क्रान्तिकारियों में से एक थे. उन्हें सेनापति बापट के नाम से भी जाना जाता है. बापट को लोग महात्मा गाँधी, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक तथा विनायक दामोदर सावरकर का अपूर्व मिश्रण भी कहते हैं. देश के लिए अपना पूरा जीवन न्योछावर कर देने वाले इस सेनापति के जीवन का अधिकांश वक्त जेल में हीं व्यतीत हुआ. संयुक्त महाराष्ट की स्थापना व गोवा मुक्ति आन्दोलन के योद्धा बापट ने भारत की आजादी के दिन यानि 15 अगस्त 1947 को पुणे शहर में तिरंगा फहराने का गौरव हासिल किया था.
8. पार्वती गिरि
मात्र 16 साल की इस निडर स्वतंत्रता सेनानी ने भारत छोड़ो आंदोलन में खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था और इसके लिए जेल की सज़ा भी काटी थी. इतनी कम उम्र में 2 साल तक जेल में कठिन कष्टमय जीवन बिताने के बाद भी देशभक्ति के प्रति इनका जोश कम नहीं हुआ और साल 1947 यानि भारत की स्वतंत्रता हासिल करने तक ब्रितानियों के प्रति इनका विरोध प्रदर्शन जारी रहा.
9. सुचेता कृपलानी
अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की संस्थापक सुचेता कृपलानी किसी भारतीय राज्य की मुख्यमंत्री बनने वाली पहली महिला थी. सुचेता कृपलानी महात्मा गांधी की बहुत बड़ी समर्थक थीं और उन्होंने महात्मा गाँधी के साथ देश के बहुत सारे स्वतंत्रता आंदोलनों का नेतृत्व किया था.
10. कमला देवी चट्टोपाध्याय
भारत के प्रारम्भिक स्वतंत्रता आन्दोलनों में कमला देवी चट्टोपाध्याय का नाम प्रमुख है. . कमला देवी चट्टोपाध्याय ने 1857 के स्वतंत्र आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. इस कारण उन्हें 14 अन्य लोगों के साथ फाँसी की सज़ा सुनाई गयी थी.