इस लेख के मुख्य बिंदु
15 अप्रैल 2014 से, ‘होयसल मंदिर’ यूनेस्को की संभावित सूची में हैं।यह मंदिर भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत की सबूत है।
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होयसल मंदिरों का नामांकन किसने किया था
यूनेस्को को होयसल मंदिरों का नामांकन यूनेस्को के लिए भारत के स्थायी प्रतिनिधि विशाल वी. शर्मा ने यूनेस्को के विश्व विरासत निदेशक लाज़ारे एलौंडौ को नामांकन प्रस्तुत किया गया था। होयसल मंदिरों का डोजियर जमा करने के बाद तकनीकी जांच की जाएगी। सितंबर या अक्टूबर 2022 में साइट का मूल्यांकन किया जाएगा और जुलाई या अगस्त 2023 में डोजियर पर विचार - विमर्स किया जाएगा।
होयसल राजवंश (Hoysala Dynasty)
होयसल वंश दक्षिण भारत में 1110 ईस्वी और 1326 ईस्वी के बीच अस्तित्व में था, इसकी स्थापना नृपा काम द्वितीय या साला ने की थी। इसकी राजधानी पहले बेलूर में थी, लेकिन बाद में इसे हालेबिड स्थापित की गई। होयसल राजवंश ने मैसूर, केरल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के आधुनिक राज्यों के कुछ हिस्सों पर शासन किया।
बेलूर में होयसल मंदिर
चेन्नाकेशव मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यह यागाची नदी के तट पर स्थित पुराने दीवारों वाले शहर के बीच में था। इसका निर्माण 1117 ई. में शुरू हुआ था और 103 सालों में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ था। इसके परिसर से लगभग 1117-18वीं सैनचुरी के शिलालेख प्राप्त हुए हैं। इस मंदिर के बाहरी हिस्से में बड़े पैमाने पर तराशी गई मूर्तियां हैं जो दैनिक जीवन, नृत्य और संगीत के दृश्यों को दिखीती हैं। ये दृश्य भगवान् विष्णु के जीवन और उनके पुनर्जन्म का वर्णन करते हैं। साथ ही यह रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों का भी वर्णन करता है।
हालेबिड में होयसला मंदिर
हालेबिड में होयसलेश्वर मंदिर 1121 ई. में होयसल राजा विष्णुवर्धन होयसलेश्वर के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। यह भगवान शिव को समर्पित है। यह द्वारसमुद्र के व्यापारियों और धनी नागरिकों द्वारा प्रायोजित और निर्मित किया गया था। यह मंदिर बाहरी दीवार पर 240 से अधिक दीवार की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।
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