Srinivasa Ramanujan 10 Facts, भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन से जुड़े 10 बातें 

safalta expert Published by: Chanchal Singh Updated Wed, 21 Dec 2022 01:51 PM IST

Highlights

  • श्रीनिवास रामानुजन को सम्मानित करने के लिए भारतीय स्तर पर गणित दिवस के रूप में  मनाया जाता है
  • साल 1911 में इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी के जनरल में इनका 17 पन्नों का एक पेपर पब्लिश हुआ था

Source: safalta

Srinivasa Ramanujan 10 Fact : भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर को मनाया जाता है। इस दिन को भारत के इस महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन को सम्मानित करने के लिए भारतीय स्तर पर गणित दिवस के रूप में  मनाया जाता है।
रामानुजन का जन्म बहुत ही साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन जो कुछ भी उन्होंने किया वह करना आसान नहीं था। बहुत कम उम्र में गणित के थ्योरम लिखने वाले रामानुजन भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल कायम किए हैं। रामानुजन ने गणित के क्षेत्र में ऐसे सिद्धांत दिए हैं, जिन्हें आज तक सुलझाया नहीं जा सका है। उनके द्वारा दिए गए फार्मूला को कई वैज्ञानिकों के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ है। रामानुजन द्वारा लिखे गए कई थ्योरम सिद्ध किए जा चुके हैं लेकिन अभी तक  कोई यह नहीं जान पाया है कि आखिर रामानुजन ने इन थियोरम को सोचा गया होगा।  ऐसे में इस लेख में हम आपको इस महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के बारे में 10 बातें बताएंगे, जिनके बारे में शायद ही किसी को खास जानकारी होगी। अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं   FREE GK EBook- Download Now. सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए इस ऐप से करें फ्री में प्रिपरेशन - Safalta App 
 

 श्रीनिवास रामानुजन के जीवन परिचय के बारे में जाने विस्तार से



 श्रीनिवास रामानुजन से जुड़े 10 बातें 


1.महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 18 सो 87 कोयंबटूर के ईरोड गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम कोमलताम्मल एवं पिता का नाम श्रीनिवासा अय्यंगर था। रामानुजन के जन्म के बाद इनका पूरा परिवार कुंबकोनम में जाकर बस गए। जहां इनके पिता कपड़े की दुकान में काम करते थे।

2. शुरुआत में रामानुजन सामान्य बच्चों की तरह थे, यहां तक कि यह 3 साल की उम्र उन्होंने बोलना शुरू भी नहीं किया था। स्कूल में भर्ती लेने के बाद पढ़ने - पड़ाने  का घिसा पिटा अंदाज उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, इसके अलावा इन्होंने प्राइमरी एग्जाम में पूरे जिले में टॉप किया था। 15 साल की उम्र में "ए सिनॉपसिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइट मैथमेटिक्स की बहुत पुरानी किताब को पूरी तरह पढ़ लिए थे, जिस किताब में हजारों थियोरम थे। इनकी प्रतिभा का ही फल था कि इन्होंने आगे अपने पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप भी मिली, जिससे इन्हें आगे पढ़ने का अवसर मिला। 

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3.रामानुजन का दिमाग केवल गणित में लगा था, इन्हें दूसरे विषयों कि और बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जिसके कारण उन्होंने पहले गवर्नमेंट कॉलेज और बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास की स्कॉलरशिप खोनी पड़ी थी। इन सब के बावजूद भी गणित के प्रति इनका लगाव कम नहीं हुआ। साल 1911 में इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी के जनरल में इनका 17 पन्नों का एक पेपर पब्लिश हुआ था, 1912 में रामानुजन मद्रास पोर्ट में क्लर्क की नौकरी मिली जिसके बाद से इनकी पहचान एक मेधावी गणितज्ञ के रूप में सामने आई।

4. रामानुजन उस दौर के विश्व प्रसिद्ध ब्रिटिश गणितज्ञ जीएच हार्डी के काम के बारे में जानने की रूचि रखते थे। 1913 में रामानुजन ने अपने कुछ काम पत्र के माध्यम से हार्डी के पास भेजे थे। शुरुआत में हार्डी ने उनके खातों को काम का न समझते हुए ध्यान नहीं दिए थे, लेकिन जल्द ही उन्होंने उनकी रामानुजन की प्रतिभा को पहचान लिए जिसके बाद हार्डी ने रामानुजन को पहले मद्रास यूनिवर्सिटी और बाद में कैंब्रिज में स्कॉलरशिप दिलाने में सहायता की थी। हार्डी ने रामानुजन को आपने पास कैंब्रिज बुला लिया था। हार्डी के सानिध्य में रामानुजन ने खुद के 20 रिसर्च पेपर पब्लिश करवाए, 1916 में रामानुजन को कैंब्रिज से बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री मिली और 1918 में रामानुजन रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के मेंबर बन गए।

5. जब ये भारत लौटे तब भारत की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, इस समय किसी भारतीय को रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन में मेंबर बहुत बड़ी बात थी। रॉयल सोसाइटी के पूरे इतिहास में रामानुजन का आयु का कोई व्यक्ति सदस्य के रूप में सदस्यता ग्रहण नहीं की थी और ना ही आज तक किसी ने किया है। रॉयल सोसाइटी की मेंबर बनने के बाद भी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले व्यक्ति थे।

6. रामानुजन कड़ी मेहनत करने वाले व्यक्ति में से एक थे। ब्रिटेन का ठंडा मौसम उन्हें सूट नहीं कर रहा था जिसके बाद 1917 में इन्हें टीबी की बीमारी हुई थी। स्वास्थ्य में थोड़े बहुत सुधार के बाद 1919 में इनकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई जिसके कारण यह भारत लौट आए। 26 अप्रैल 1920 के 32 साल की आयु में इनका देहांत हो गया। बीमारी की हालत में भी इन्होंने गणित से अपना नाता नहीं तोड़ा था। यह बिस्तर पर लेटे वक्त भी थियोरम लिखा करते थे। जब कोई उनसे रेस्ट के बजाये थ्योरम लिकने का कारण पूछा जाता था कि आप आराम के बजाय थ्योरम क्यों लिख रहे हैं तब वे कहा करते थे कि थियोरम सपने में आए थे।

7. रामानुजन के बनाए गए ढेर सारे ऐसे थियोरम है जो आज भी किसी पहेली से कम नहीं है। आज तक इनके द्वारा लिखे गए थियोरम को बड़े से बड़े गणितज्ञ भी नहीं सुलझा पाए हैं। उनका एक पुराना रजिस्टर 1976 कॉलेज की लाइब्रेरी में मिला था जिसमें कई फार्मूले थे। इस रजिस्टर में लिखे हुए थियोरम आज तक नहीं सुलझाया नहीं जा सका है। इस रजिस्टर को रामानुजन की नोटबुक के नाम से जाना जाता है। 

8.रामानुजन ईश्वर के ऊपर अपार विश्वास एवं श्रद्धा रखते थे, जब उनसे गणित के फार्मूले के बारे में पूछा जाता तो वह कहते इष्ट की देवी नामगिरी देवी की कृपा से उन्हें यह फार्मूला आते थे, रामानुजन का कहना था कि मेरे लिए गणित के फार्मूले का कोई अर्थ नहीं जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार ना मिलते हो।

9. रामानुजन की बायोग्राफी द मैन हू न्यू इंफिनिटी 1991 में पब्लिश हुई थी। इसी नाम से रामानुजन पर एक फिल्म भी बनी है। इस फिल्म में एक्टर देव पटेल ने रामानुजन का रोल प्ले किया था।

10. रामानुजन आज भी ना सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी गणितज्ञों के लिए इंस्पिरेशनल है।

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