Medieval History of Bihar: जानिए बिहार के मध्यकालीन इतिहास के बारे में

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Tue, 12 Apr 2022 10:54 AM IST

Source: Safalta

बिहार के मध्यकालीन इतिहास को अगर याद करें तो जो स्मरण आता है वह है विदेशी आक्रमण और वंश परम्परा. जिसने बिहार के वैभव, गौरव और प्रतिष्ठा को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया. वंश क्रम में पदारोहण की लालसा या उत्तराधिकार के लिए युद्ध और फिर विदेशी आक्रान्ताओं के आक्रमण ने बिहार पर गुजरे हुए उस दौर को अब तक का काला युग बना दिया. इन आक्रमणों ने बिहार में शिक्षा के उन महान केन्द्रों, स्कूलों को तहस नहस कर दिया जो विद्यार्थियों और शिक्षार्थियों को उनके गौरवशाली राष्ट्र की संस्कृति की महानता और तहज़ीब तथा शुल्कों से सम्बन्धित गूढ़ बातें सिखा सकता था. अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.
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हम कह सकते हैं कि, ''बिहार'' जो कभी भारत का राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र हुआ करता था, मध्यकाल के दौरान उसने अपनी अमूल्य प्रतिष्ठा खो दी. तुर्क और अफगान काल के दौरान, बिहार दिल्ली सल्तनत का एक हिस्सा बनाया गया. पहली बार दिल्ली सल्तनत के उदय ने भारत में एक स्वायत्त मुस्लिम शक्ति के विकास को चिह्नित किया. दिल्ली सल्तनत ने 1290 से 1526 ई. तक भारत पर शासन किया. इस समय तक, सही मायने में दिल्ली ने मुस्लिम शक्तियों के शासन करने के लिए एक आधार के रूप में काम किया. पहला शासक साम्राज्य जो दिल्ली सल्तनत का हिस्सा था, खिलजी राजवंश था. बाद में इस पर गुलाम वंश, तुगलक वंश और दिल्ली सल्तनत के शक्तिशाली शासकों का शासन रहा. मध्यकाल में इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार, कुतुब-उद-दीन ऐबक, इल्तुतमिश, फिरोज शाह तुगलक, गयास-उद-दीन तुगलक, सिकंदर लोदी और इब्राहिम लोदी जैसे शक्तिशाली शासकों ने इस राज्य पर शासन किया. गुलाम वंश के शासन के दौरान यहाँ के स्थानीय शासक स्वतंत्र तो थे लेकिन उन्होंने गुलाम शासकों को कर दिया क्योंकि उनका मनेर, बिहार शरीफ, भोजपुर, गया, पटना, मुंगेर, भागलपुर, संथाल परगना, नालंदा, लखी सराय  और विक्रमशिला आदि जगहों पर नियंत्रण था.

बिहार में तुर्की आक्रमणकारी -

मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी, कुतुब-उद-दीन ऐबक के सैन्य जनरलों में से एक था जिसने 12 वीं शताब्दी के अंत में और 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों पर आक्रमण किया था. अपने इस आक्रमण के दौरान, मुस्लिम आक्रान्ताओं ने कई बौद्ध विहारों और विश्वविद्यालयों को तहस नहस कर दिया और हजारों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या कर दी. इन मुस्लिम आक्रान्ताओं ने नालन्दा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी में आग लगा दी. जिनमें लाखों बहुमूल्य पुस्तकें जल कर ख़ाक हो गई.

बिहार में मुस्लिम शासन -

बिहार का मध्यकालीन इतिहास शेरशाह सूरी और मुगल शासन के कुशल शासन से संबंधित है. बिहार का गौरवशाली इतिहास 7वीं या 8वीं शताब्दी के मध्य तक गुप्त काल तक चला. मध्य-पूर्व के आक्रमणकारियों द्वारा लगभग पूरे उत्तर भारत पर विजय प्राप्त करने के साथ धीरे-धीरे गुप्त वंश का पतन हो गया.

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बिहार में सिलसिलेवार मध्यकालीन राजवंश -

गुलाम राज-कुल -
बिहार पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, नूहानी वंश, चेर वंश, भोजपुर के उज्जैनी वंश, सुर वंश और फिर मुगल वंश का शासन रहा.

खिलजी राज-कुल -
1296 ई. में जब अलाउद्दीन खिलजी गद्दी पर बैठा तो उसने शेख मोहम्मद इस्माइल को दरभंगा जीतने के लिए भेजा. शेख मोहम्मद इस्माइल को दरभगा के स्थानीय शासक राजा सकरा सिंह ने हरा दिया. तब उसने दरभंगा पर आक्रमण कर राजा को अपना सहयोगी बना लिया. युद्ध संधि के बाद, स्थानीय राजा ने रणथंभौर आक्रमण में भाग लिया. बाद में, फिरोजशाह के पुत्र हातिम खान को 1315- 1321 ईस्वी के बीच बिहार का राज्यपाल बनाया गया.

तुगलक राज-कुल -
गयासुद्दीन तुगलक के आक्रमण ने इस प्रदेश में बहुत अराजकता पैदा कर दी. हरिसिंह जैसे कुछ स्थानीय राजा अपने प्रदेश को छोड़ कर भाग गए. कुछ शासकों ने विद्रोह तो किया लेकिन और कुछ शासकों ने इधर सुलह कर ली. जिससे आक्रमण से पैदा हुई अराजक स्थिति के बाद, तुगलक राजवंश ने अपने शासन की स्थिति को मज़बूत कर लिया और बाद में अहमद को तिरहुत क्षेत्र का राज्यपाल बना दिया.

तिरहुत प्रदेश से तुगलक शासन काल के कुछ सिक्के मिले हैं जो इस समूचे क्षेत्र पर तुगलकों के नियंत्रण की बात को दर्शाते हैं. इस क्षेत्र से एक और जो अहम् जानकारी मिली है वह यह है कि कि तुगलकों के शासन काल में भूमि कर के रूप में जिसे ''खराज'' कहा जाता था यहाँ के किसानों और निवासियों से कर वसूला जाता था. तुगलक शासन के दौरान, वर्तमान दरभंगा शहर को तुगलकपुर कहा जाता था. मलिक इब्राहिम को बिहार में तुगलग वंश का सबसे सक्षम शासक कहा जाता है.

नूहानी राजवंश -
यह राजवंश दिल्ली में राजनीतिक परिवर्तन के बाद जब सिकंदर लोधी गद्दी पर बैठा, अस्तित्व में आया. उसने दरिया खां लोहानी को बिहार का प्रशासक बनाया जिसे एक कुशल प्रशासक माना गया है. उसका अनुसरण करते हुए बहार खान लोहानी ने स्वयं को स्वतंत्र शासक घोषित करते हुए ''सुल्तान मोहम्मद' की उपाधि धारण कर ली.

इसके बाद सुल्तान मोहम्मद के पुत्र जलाल खान ने फरीद खान या शेर खान के संरक्षण में एक शासक के रूप में गद्दी संभाली. फरीद खान ने बंगाल में आक्रमण का नेतृत्व किया और सफलतापूर्वक जीत हासिल की और इसलिए, जलाल खान को 'हजरत-ए-आला' की उपाधि दी गई.

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चेर राज-कुल -
यह राजवंश पाल वंश के पतन के बाद उभरा और भोजपुर, सारण, चंपारण, मुजफ्फरपुर और इन्होंने पलामू आदि जिलों में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की.

भोजपुर का उज्जैन राज-कुल -
भोजपुर के उज्जैन राजवंश चेर के सहसबल को मार कर उभरा. भोजपुर में उन्हें संतान सिंह के नाम से जाना जाता है. इस क्षेत्र पर क्रमशः सोमराज, हरराज और संग्राम देव का शासन रहा. संग्राम देव ने ढाबा को अपनी राजधानी बनाया. इसके बाद राजा नारायण ने उज्जैन राजवंश का गौरव बढ़ाते हुए बक्सर को अपनी राजधानी बनाया और अंग्रेजों के भारत आने तक यहाँ आने तक यही स्थिति बरक़रार रही.

सूर राज-कुल -
शेरशाह सूरी के शासन काल को मध्यकालीन बिहार का स्वर्ण युग कहते हैं. जब बिहार का वैभव चरम पर था. शेरशाह कहे जाने से पहले उन्हें फरीद खान के नाम से जाना जाता था. चौसा के युद्ध में जीत हासिल करने के बाद फरीद खान को ''शेरशाह सुल्तान-ए-आदिल'' की उपाधि प्रदान की गई.

बिहार में मुगल शासन -
बिहार के लिए मुगल काल दिल्ली से शासित अचूक प्रांतीय प्रशासन का काल था. उस समय के दौरान बिहार का एकमात्र उल्लेखनीय और शक्तिशाली व्यक्ति शेर शाह सूरी था जो एक अफगान था. मुगल शासक का यह जागीरदार ''सासाराम'' में, जो अभी भी मध्य-पश्चिमी बिहार में एक शहर है, शासन करता था. शेर शाह सूरी दो बार बाबर के पुत्र हुमायूँ को हराने में सफल रहा था. पहली बार चौसा की लड़ाई में और फिर, कन्नौज में, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश में स्थित है. कई लड़ाईयों में विजय प्राप्त करने के बाद शेर शाह सूरी ने अपने साम्राज्य को पंजाब तक फैलाया. शेर शाह सूरी को एक क्रूर योद्धा के साथ-साथ एक महान प्रशासक के रूप में भी जाना जाता है. मध्यकाल के दौरान, बिहार ने शेर शाह सूरी के शासन के दरमियान लगभग छह वर्षों तक गौरव की अवधि भी देखी जब शेर शाह सूरी ने भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे लंबी सड़क ''ग्रैंड ट्रंक रोड'' का निर्माण कराया. यह सड़क कोलकाता से पेशावर, पाकिस्तान तक बनाई गई थी. शेर शाह सूरी द्वारा रुपया और सीमा शुल्क की शुरूआत के अलावा कई अन्य आर्थिक सुधार भी किए गए, शेर शाह सूरी ने पटना शहर को पुनर्जीवित किया और वहाँ अपना मुख्यालय बनाया.

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मुगल राजवंश -
मुगल साम्राज्य के अकबर महान के आगमन के बाद बिहार पर मुगल राजवंश का शासन रहा. 1780 में मुनीम खानम को बिहार का राज्यपाल बनाया गया और बिहार को मुगल साम्राज्य का प्रांत घोषित कर दिया गया.
साल 1557 से 1576 के बीच मुगल सम्राट अकबर महान ने बिहार और बंगाल को अपने साम्राज्य में मिला लिया. बाद में मुगलों के पतन के साथ बिहार और बंगाल का नियन्त्रण नवाबों के हाथों में चला गया. इस अवधि में शासकों के द्वारा उच्च करों के रूप में जनता का भारी शोषण देखा गया. बंगाल के नवाबों के द्वारा इस क्षेत्र में जिन व्यापारों को फलने-फूलने और जारी रखने की अनुमति दी गई उनमें उपमहाद्वीप के सबसे बड़े मेलों में से एक सोनपुर मेला भी एक है. क्योंकि यह दूर-दूर से व्यापारियों को आमंत्रित करता था जिससे आर्थिक समृद्धि में भरपूर वृद्धि होती थी. औरंगजेब ने अपने पोते अजीम को बिहार का सूबेदार बनाया था. अजीम ने पाटलिपुत्र का पुनर्निर्माण कराया और उसका नाम बदलकर अजीमाबाद कर दिया था. फर्रुखशियार पहले मुगल शासक थे जिन्होंने पटना में अपने पद की घोषणा की थी.
 

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भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे लंबी सड़क का निर्माण किसने कराया ?

भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे लंबी सड़क ''ग्रैंड ट्रंक रोड'' का निर्माण शेर शाह सूरी ने कराया.

बंगाल के नवाबों ने बिहार के किस मेले को फलने-फूलने और जारी रखने की अनुमति दी थी.

बंगाल के नवाबों के द्वारा बिहार में जिन व्यापारों को फलने-फूलने और जारी रखने की अनुमति दी गई उनमें उपमहाद्वीप के सबसे बड़े मेलों में से एक सोनपुर मेला एक है.

औरंगजेब ने अपने पोते अजीम को कहाँ का सूबेदार बनाया था ?

औरंगजेब ने अपने पोते अजीम को बिहार का सूबेदार बनाया था.

12 वीं शताब्दी के अंत में और 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में किस मुस्लिम आक्रान्ताओं ने भारत पर आक्रमण किया था ? जिस दौरान इन मुस्लिम आक्रान्ताओं ने बिहार के बौद्ध विहारों और विश्वविद्यालयों को तहस नहस कर दिया था और हजारों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या भी कर दी थी ?

12 वीं शताब्दी के अंत में और 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में तुर्की आक्रमणकारी मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों पर आक्रमण किया था. अपने इस आक्रमण के दौरान, इस मुस्लिम आक्रान्ता ने कई बौद्ध विहारों और विश्वविद्यालयों को तहस नहस कर दिया और हजारों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या कर दी थी .

तुगलकों के शासन काल में भूमि कर के रूप में बिहार के किसानों और निवासियों से जो कर वसूला जाता था उसे क्या कहते थे ?

तुगलकों के शासन काल में भूमि कर के रूप में बिहार के किसानों और निवासियों से जो कर वसूला जाता था उसे ''खराज'' कहा जाता था.