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मनरेगा योजना के मुख्य बिंदु
- समिति ने ऐसे समय में सिफारिशें दीं, जब कोविड -19 महामारी के बीच अपने गांवों में लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए यह योजना सुरक्षा जाल बन गई है।
- इसके अलावा, इस योजना के तहत काम की मांग वित्तीय वर्ष 2021-2022 में अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
- कोराना महामारी के बीच यह रोजगार योजना ग्रामिण लोगों के लिए वरदान साबित हुई है। लोगों को इससे रोजगार और महामारी के बीच पैसे की तंगी से आराम भी मिला है।
- इसने बजटीय आवंटन को अधिक व्यावहारिक तरीके से करने की सिफारिश की, ताकि मजदूरी और भौतिक हिस्से के भुगतान के लिए धन का प्रवाह विना बाधा के जारी रख सके और किसी भी समय धन की कमी न हो।
- इस समिति ने मौजूदा प्रावधानों पर भी ध्यान दिया और कहा कि मनरेगा ग्रामीण लोगों के लिए आखिरी ‘फॉल बैक’ विकल्प है।
- इसने ग्रामीण विकास विभाग को 100 से 150 दिनों के काम के गारंटीकृत दिनों की वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए योजना की समीक्षा करने की सिफारिश की।
- इस समिति ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को इस योजना के तहत मजदूरी दरों को मुद्रास्फीति के अनुरूप सूचकांक से जोड़कर बढ़ाने के लिए भी कहा है।
- अभी इस पर सिर्फ बैठक हुई है, मंत्रालय ने समिति की सिफारिशें बस सुनी है, इस पर सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया है।
वित्त मंत्रालय ने केंद्रीय बजट 2022-23 में मनरेगा के लिए विनियोजिन में वृद्धि नहीं की है। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए वित्त मंत्रालय ने इसमें 73,000 करोड़ रुपये बरकरार रखा है।
मनरेगा में सुधार की क्या जरूरत है?
बदलते समय और कोविड -19 महामारी के आलोक में उभरती चुनौतियों को देखते हुए समिति ने यह निर्णय लिया है कि मनरेगा योजना को नया रूप देने की आवश्यकता है।इस प्रकार, समिति का विचार है कि इस योजना के कार्यों की प्रकृति में इस तरह से विविधता लाने की आवश्यकता है कि गारंटीकृत कार्य दिवसों की संख्या को कम से कम 150 दिनों तक बढ़ाया जा सके, ताकि लोगों को और अधिक दिनों के लिए रोजगार मिल सके।
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