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भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र (डेमोक्रेसी) माना जाता है.
क्या है जमानत राशि ?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 34 1 (ए) के अनुसार, सामान्य उम्मीदवारों (जनरल कैंडिडेट्स) के लिए किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र (पार्लियामेंट्री कांस्टिच्वेंसी) से चुनाव लड़ने के लिए 25,000/-रुपये की सुरक्षा राशि और विधानसभा क्षेत्र (असेंबली कांस्टिच्वेंसी) से चुनाव लड़ने के लिए 10,000/-रुपये की सुरक्षा राशि जमा करना अनिवार्य है.
यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि सेक्शन 34(1)(बी) के अनुसार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को इन दोनों चुनावों के लिए आधी राशि हीं जमा करनी होगी. इसलिए चुनाव आयोग के पास जमा की गई इस राशि को ''चुनाव में जमानत राशि'' कहा जाता है.
चुनाव में सिक्योरिटी डिपाजिट (सुरक्षा जमा) की जब्ती को क्या कहा जाता है ? चुनाव में सिक्योरिटी डिपाजिट (सुरक्षा जमा) की जब्ती को जमानत जब्त होना कहा जाता है . लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 158 में विभिन्न चुनावों में उम्मीदवारों की जमानत राशि वापस करने के कुछ तरीके बताए गए हैं. इन्हीं तरीकों में इस बात की भी तफ़सील की गई है जो यह निर्धारित करती है कि भारत के चुनाव आयोग द्वारा किस उम्मीदवार की जमानत राशि जब्त की जाएगी.
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नियम के अनुसार, यदि किसी उम्मीदवार को किसी निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए कुल वैध मतों के 1/6 से कम वोट मिलते हैं तो उसकी जमानत राशि जब्त कर ली जाएगी. इसका मतलब है कि जिस उम्मीदवार ने चुनाव आयोग को 25,000/-रुपये या फिर 10,000/-रूपए या कोई अन्य राशि जमा किए थे वह राशि भारत के चुनाव आयोग के द्वारा उम्मीदवार को वापस नहीं की जाएगी. उदाहरण के लिए, यदि एक विधानसभा सीट पर एक लाख वोट डाले जाते हैं, तो सिक्योरिटी डिपाजिट को बचाने के लिए, प्रत्येक उम्मीदवार को उस विधानसभा सीट के लिए डाले गए कुल वैध वोटों की संख्या का 1/6 भाग सुरक्षित करना होगा. इसका मतलब है कि प्रत्येक उम्मीदवार को 16,666 से अधिक वोट हासिल करने होंगे. 1951-52 के पहले लोकसभा चुनाव में लगभग 40% यानी 1874 में से 745 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. तब से लेकर , लगभग सभी लोकसभा चुनावों में सिक्योरिटी डिपाजिट जब्त होने का सिलसिला जारी रहा. इसका चरम 1996 के 11वीं लोकसभा चुनाव में आया था, जब 13952 उम्मीदवारों में से 91 प्रतिशत यानि कि 12688 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी.सिक्योरिटी डिपाजिट (सुरक्षा जमाराशि) निम्नलिखित परिस्थितियों में वापस किया जाता है -
1. यदि उम्मीदवार का नाम चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की सूची में नहीं दिखाया जा रहा है तो इसका मतलब है कि या तो उसका नाम चुनाव आयोग द्वारा खारिज कर दिया गया है या उस कैंडिडेट ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है. या
2. यदि मतदान शुरू होने से पहले हीं उम्मीदवार की मृत्यु हो जाती है. या
3. यदि उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है. या
4. यदि कोई उम्मीदवार चुनाव नहीं भी जीतता है, किन्तु वह निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए कुल वैध मतों के 1/6 से अधिक वोट प्राप्त कर लेता है. या
5. यदि उम्मीदवार चुनाव जीत जाता है, लेकिन उसे कुल वैध मतों का 1/6 मत नहीं मिलता है, तो भी उसकी जमानत राशि वापस कर दी जाती है. हमारे देश में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब एक चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार को भी कुल कानूनी वोट का 1/6 नहीं मिल पाया है. लेकिन यह एक ऐसा लोकतंत्र है जहां चुनाव में जीत हासिल करने के लिए न्यूनतम वोट प्राप्त करने पर भी कोई रोक नहीं है.
नोट - यदि उम्मीदवार को कुल वैध मतों का ठीक ठीक 1/6 भाग प्राप्त होता है, तब भी चुनाव आयोग द्वारा उसकी जमानत राशि जब्त कर ली जाती है.
चुनाव आयोग द्वारा सिक्योरिटी डिपाजिट (सुरक्षा जमाराशि) क्यों ली जाती है ?
यह राशि इसलिए जमा की जाती है ताकि चुनाव लड़ने के लिए गंभीर उम्मीदवार हीं अपना नामांकन दाखिल करें. लेकिन ऐसा प्रतीत हो रहा है कि चुनाव आयोग का यह कदम भी अधिक कारगर नहीं हो पा रहा है. क्योंकि जमानत राशि के लिए जमा ली जाने वाली आवश्यक राशि बहुत कम है और बहुत से उम्मीदवार अपना नामांकन इस लिए दाखिल कर देते हैं ताकि अन्य दलों से नकद प्राप्त कर सकें. अन्य दलों से नकद लेकर वे अपना नामांकन वापस ले लेते हैं. निष्कर्ष के रूप में हम यह कह सकते हैं कि भारत का चुनाव आयोग देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष संसदीय और विधानसभा चुनाव कराने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाता है. और सिक्योरिटी डिपाजिट (सुरक्षा राशि) जमा करवाना उन्हीं कदमों में से एक है. बदलते वक़्त के साथ यह समय की मांग है कि चुनाव आयोग गंभीर उम्मीदवारों की जांच के लिए सुरक्षा जमा की राशि बढ़ाए अथवा कोई अन्य कदम उठाए.
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