World Interfaith Harmony Week:विश्व अंतरधार्मिक सद्भाव सप्ताह , जानिए महत्व एवं इतिहास

safalta experts Published by: Chanchal Singh Updated Wed, 02 Feb 2022 05:33 PM IST

Highlights

महासभा ने दुनिया के चर्चों, मस्जिदों, सभाओं, मंदिरों और अन्य स्थानों में अंतरधार्मिक सद्भावना का संदेश फैलाने के लिए प्रोत्साहित करती है।

Source: social media

Interfaith Harmony Week: विश्व अंतरधार्मिक सद्भाव सप्ताह (World Interfaith Harmony Week) एक वार्षिक कार्यक्रम है। जिसे 2010 में महासभा के पदनाम के बाद फरवरी के1st week के दौरान मनाया जाता है। इस महासभा में बताया गया कि आपसी समझ और अंतर्धार्मिक संवाद शांति की संस्कृति के महत्वपूर्ण आयाम हैं और विश्व अंतरधार्मिक सद्भाव सप्ताह की स्थापना की।
जो कि विश्व के  सभी लोगों के बीच उनकी आस्था की परवाह किए बिना सद्भावना को बढ़ावा देने का एक तरीका है।


इस सप्ताह का महत्व

इस सप्ताह में लोगों के बीच आपसी समझ, सद्भाव और सहयोग बढ़ाने के लिए विभिन्न धर्मों  के बीच संवाद की अनिवार्य आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, महासभा ने दुनिया के चर्चों, मस्जिदों, सभाओं, मंदिरों और अन्य स्थानों में अंतरधार्मिक सद्भावना का संदेश फैलाने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस सप्ताह के दौरान लोग  स्वैच्छिक आधार पर अपनी धार्मिक परंपराओं या विश्वासों के अनुसार पूजा या ध्यान करते हैं।

धार्मिक आज्ञा

2007 में शुरू हुई यह पहल, मुस्लिम और ईसाई नेताओं को 2 सामान्य मौलिक धार्मिक आज्ञा के उपर थी
1.प्यार का देवता  
2.पड़ोसी का प्यार।

 इस आधार पर बातचीत में शामिल होने के लिए बुलाया गया था, बिना किसी स्वयं के धार्मिक सिद्धांत से समझौता किए बगैर। यह दोनों आज्ञाएँ तीन एकेश्वरवादी धर्मों के केंद्र में हैं। 

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सप्ताह का इतिहास:

संस्कृति, शांति और अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए विश्व इंटरफेथ हार्मनी वीक (WIHW) की कल्पना की गई थी, जिसे पहली बार 2010 में संयुक्त राष्ट्र में जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय (Abdullah II) द्वारा प्रस्तावित किया गया था।

हर साल इस सप्ताह के आयोजन में 2012 से लेकर 2019 तक क्या क्या थीम रखे गए थे।

1. प्रवासी-सकारात्मक परिवर्तन के लिए एक बल।
2. लोगों को शांति से रहने की आवश्यकता है लेकिन प्रकृति के साथ मनुष्यों की अन्योन्याश्रयता भी।
3. सहिष्णुता, सुलह और क्षमा।
4. शांति के कारण इंटरफेथ प्रार्थना, उपचार, और सामुदायिक सेवाएं।
5. सीमाओं के आर-पार पुलों का निर्माण।
6. अंतरधार्मिक सद्भाव के माध्यम से सतत विकास।

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