भारत का वैदिक काल

Safalta Experts Published by: Blog Safalta Updated Thu, 02 Sep 2021 11:41 AM IST

Source: DAILYHUNT

भारत का वैदिक काल

ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू)

  • अनेक परिवारों को मिलकर ग्राम बनता था, जिसका प्रधान ग्रामीण कहलाता था तथा अनेक ग्रामों को मिलाकर विश बनता था, जिसका प्रधान विशपति होता था।
  • अनेक विशों का समूह जन या कबीला कहलाता था जिसका प्रधान राजा/राजन या गोप होता था।
  • परिवार पितृसत्तात्मक का समूह था तथा वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी।
  • सोम आयों का मुख्य पेय पदार्थ था, जौ (यव) खाघ वदार्थ था।
  • आर्य बहुदेववादी होते हुए भी एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे।
  • देवताओं में सर्वोच्च स्थान इंद्र व उसके उपरान्त अग्नि व वरुण को दिया गया था।
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उत्तरवैदिक काल

  • उत्तवैदिक काल में यज्ञीय कर्मकाण्डों में जटिलता एंव भव्यता आ गई थी।
  • यज्ञ विधान का प्रचलन उत्तवैदिक काल में हुआ। यह राज्यभिषेक से सम्बन्धित था। इस यज्ञ के दौरान राजा पत्नियों के घर जाता था।

                   गृहस्थों के द्वारा अयोजित पंच महायज्ञ

क्र. यज्ञ विधान
1. ब्रहा यज्ञ प्राचीन ऋषि के प्रति  कृतज्ञता
2. देव यज्ञ देवताओं की पूजा
3. पितृ यज्ञ पितरों का तपर्ण
4. नृ यज्ञ अतिथि सत्कार
5. भूत यज्ञ समस्त जीवों के प्रति कृतज्ञता
  • अश्वमेघ यज्ञ शक्ति का घोतक था।
  • वाजपेय यज्ञ में राजा रथों की दौड़ का आयोग करता था। यह यज्ञ खान -पान से सम्बन्धित  यज्ञ था
  • अग्निष्टेम यज्ञ मैं अग्नि को पशुबली की दी जाति थी।
  • पूषण ऋग्वैदिक काल में पाशुओं के देवता थे जो उत्तरवैदिक कल में शूद्रों के देवता हो गये।
  • उत्तरवैदिक काल में इंद्र के स्थान प्रति प्रजापति सर्वाधिक प्रिय देवता हो गये।
  • उत्तर वैदिक काल में प्रजापति सृष्टि के रचिता, विष्णु विश्व के रक्षक एंव पूषण शूद्रों का देवता है।
  • अथर्ववेद के अनुसर "राष्ट्र राज्य के हाथों में हो तथा राजा और देवता मिलकर उसे सुद्रन बनाएँ"