भारत का वैदिक काल
ऋग्वैदिक काल (1500-1000 ई.पू)
- अनेक परिवारों को मिलकर ग्राम बनता था, जिसका प्रधान ग्रामीण कहलाता था तथा अनेक ग्रामों को मिलाकर विश बनता था, जिसका प्रधान विशपति होता था।
- अनेक विशों का समूह जन या कबीला कहलाता था जिसका प्रधान राजा/राजन या गोप होता था।
- परिवार पितृसत्तात्मक का समूह था तथा वर्ण व्यवस्था कर्म पर आधारित थी।
- सोम आयों का मुख्य पेय पदार्थ था, जौ (यव) खाघ वदार्थ था।
- आर्य बहुदेववादी होते हुए भी एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे।
- देवताओं में सर्वोच्च स्थान इंद्र व उसके उपरान्त अग्नि व वरुण को दिया गया था।
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उत्तरवैदिक काल
- उत्तवैदिक काल में यज्ञीय कर्मकाण्डों में जटिलता एंव भव्यता आ गई थी।
- यज्ञ विधान का प्रचलन उत्तवैदिक काल में हुआ। यह राज्यभिषेक से सम्बन्धित था। इस यज्ञ के दौरान राजा पत्नियों के घर जाता था।
गृहस्थों के द्वारा अयोजित पंच महायज्ञ
क्र. | यज्ञ | विधान |
1. | ब्रहा यज्ञ | प्राचीन ऋषि के प्रति कृतज्ञता |
2. | देव यज्ञ | देवताओं की पूजा |
3. | पितृ यज्ञ | पितरों का तपर्ण |
4. | नृ यज्ञ | अतिथि सत्कार |
5. | भूत यज्ञ | समस्त जीवों के प्रति कृतज्ञता |
- अश्वमेघ यज्ञ शक्ति का घोतक था।
- वाजपेय यज्ञ में राजा रथों की दौड़ का आयोग करता था। यह यज्ञ खान -पान से सम्बन्धित यज्ञ था
- अग्निष्टेम यज्ञ मैं अग्नि को पशुबली की दी जाति थी।
- पूषण ऋग्वैदिक काल में पाशुओं के देवता थे जो उत्तरवैदिक कल में शूद्रों के देवता हो गये।
- उत्तरवैदिक काल में इंद्र के स्थान प्रति प्रजापति सर्वाधिक प्रिय देवता हो गये।
- उत्तर वैदिक काल में प्रजापति सृष्टि के रचिता, विष्णु विश्व के रक्षक एंव पूषण शूद्रों का देवता है।
- अथर्ववेद के अनुसर "राष्ट्र राज्य के हाथों में हो तथा राजा और देवता मिलकर उसे सुद्रन बनाएँ"