Causes of The Russian Revolution: जानिए रूसी क्रांति के बारे में

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Fri, 13 May 2022 11:52 PM IST

Causes of The Russian Revolution- रूसी क्रांति 20वीं सदी में हुई घटनाओं में सबसे ज्यादा महत्व रखती है. यह वास्तव में रूस में हुई क्रांतियों की एक श्रृंखला थी. इस श्रंखला में पहली क्रांति सन 1905 में हुई थी. इसके बाद सन 1917 की रूसी क्रांति हुई. फरवरी (ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च) में हुई पहली क्रांति ने शाही सरकार को उखाड़ फेंका था. और अक्टूबर (ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार नवम्बर) में हुई दूसरी क्रांति ने बोल्शेविकों को सत्ता में ला दिया था. रूसी क्रांति ने सदियों से रूस में चली आ रही राजशाही को समाप्त किया था और इस प्रकार दुनिया के पहले संवैधानिक रूप से कम्युनिस्ट राज्य का निर्माण हुआ था. यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.

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1900 के दशक का रूस

1900 के दशक का रूस पूरे यूरोप के देशों में से आर्थिक रूप से सबसे अधिक पिछड़ा और औद्योगिक रूप से सबसे कम विकसित देशों में से एक था. यहां किसानों की आबादी सबसे ज्यादा थी और औद्योगिक श्रमिकों की संख्या में भी वृद्धि होती जा रही थी. हालाँकि 16 वीं शताब्दी के अंत में पुनर्जागरण के समय यूरोप के अधिकांश हिस्सों में दासता प्रथा समाप्त हो गई थी और इस प्रथा को रूस से 1861 में ही समाप्त कर दिया गया था. लेकिन फ़िर भी रूस में दासता (एक प्रणाली जहां भूमिहीन किसानों को भूमि-मालिक की सेवा करने के लिए मजबूर किया जाता था) प्रथा अभी भी प्रचलित थी. सन 1613 से सन 1917 तक रूस पर रोमनोव्स के शाही घराने का शासन था. ज़ार अपनी पत्नी ज़ारिना के साथ राजशाही का प्रमुख था.

रूसी क्रांति का कारण क्या था?

  • 19वीं सदी के अधिकांश राजाओं ने दमनकारी रूप से शासन किया था. उनका यह दमनकारी शासन दशकों तक व्यापक सामाजिक अशांति का कारण बना रहा. आम जनता के बीच सामाजिक असमानताओं और किसानों के प्रति क्रूर व्यवहार के कारण राजशाही पर गुस्सा बढ़ता गया.
  • ज़ार के अनुचित शासन के परिणामस्वरूप कई हिंसक प्रतिक्रियायें देखने को मिली, जैसे कि 1825 में सेना के अधिकारियों ने विद्रोह कर दिया, और सैकड़ों किसानों ने दंगे भी किये.
  • गुप्त क्रांतिकारी समूहों का गठन किया गया. इन समूहों ने सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रची. सन 1881 में, क्रोधित छात्र क्रांतिकारियों ने ज़ार, अलेक्जेंडर II की हत्या कर दी.
इसके बाद रूस पूर्ण रूप से क्रांति की ओर बढ़ चला.
 
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1905 की रूसी क्रांति

रूस-जापानी युद्ध (1904–05) में शर्मनाक हार के बाद एशिया में सदियों से बिना चुनौती के चले आ रहे रूसी विस्तार का अंत हो गया. इस सैन्य हार ने पूरे एशिया पर प्रभुत्व स्थापित करने के रूस के सपने को तोड़ दिया, और घरेलू अशांति की लहर में भी उत्प्रेरक का काम किया, जिससे 1905 की रूसी क्रांति हुई.

इस दौरान औद्योगिक क्रांति भी रूस तक पहुंच गई जिससे देश में जनसंख्या और कार्यबल दोनों दोगुने हो गए. इसके कारण शहरों के बुनियादी ढांचे पर दबाव पड़ना शुरू हो गया. परिणामस्वरूप भीड़भाड़ और प्रदूषण में वृद्धि हो गयी. इन सब का प्रभाव शहरी मजदूर वर्ग पर पड़ा और उनके लिए एक नए स्तर के विनाश का कारण बना. जनसंख्या में हुयी वृद्धि के लिए खाद्य आपूर्ति लंबे समय तक के लिए नहीं की जा सकती थी, क्योंकि दशकों के आर्थिक कुप्रबंधन और युद्धों में हुए खर्चे के कारण इस विशाल देश में संसाधनों की दीर्घकालिक कमी हो गई थी.

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खूनी रविवार नरसंहार

खराब परिस्थितियों के विरोध में, मजदूर वर्ग ने ज़ार निकोलस द्वितीय के शीतकालीन महल में मार्च किया. इस वक़्त ज़ार ने रूसी सैनिकों को गोली नहीं चलाने का आदेश दिया हुआ था. लेकिन मजदूरों की भीड़ ने जब सैनिकों को धमकाया तो उन्होंने सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को मार डाला और कईयों को घायल कर दिया. जिसके बाद इसे खूनी रविवार नरसंहार कहा जाने लगा.

इस हत्याकांड ने 1905 की रूसी क्रांति को जन्म दिया. सैंकड़ों प्रदर्शनकारियों की हत्या से गुस्साए श्रमिकों ने पूरे देश में कई जगहों पर हड़ताल कर दी. इन हड़तालों द्वारा वो खूनी रविवार की घटना का जवाब देना चाहते थे. इन हड़तालों ने रूस की पहले से ही नाजुक अर्थव्यवस्था को और खतरे में डाल दिया. निकोलस II के पास और कोई विकल्प हीं नहीं बचा और वह सुधारों को लागू करने के लिए सहमत हो गया. इन सुधारों को अक्टूबर घोषणापत्र के रूप में जाना गया.
हालाँकि राजशाही का निरंकुश शासन एक संवैधानिक राजतंत्र में परिवर्तित हो गया था, लेकिन फ़िर भी ज़ार के पास अंतिम निर्णय लेने की शक्ति थी. इस शक्ति का दुरुपयोग करते हुए ज़ार ने बार-बार ड्यूमा (रूसी संसद) को खारिज़ किया ताकि सुधारों को लागू करने में देरी हो.

प्रथम विश्व युद्ध और रूसी साम्राज्य का पतन

अगस्त 1914 में प्रथम विश्व युद्ध हुआ था. इस दौरान रूस ऑस्ट्रिया, जर्मनी और तुर्की की केंद्रीय शक्तियों के खिलाफ अपने सर्बियाई, फ्रांसीसी और ब्रिटिश सहयोगियों के साथ शामिल हो गया.
रूस के जापान के साथ हुए युद्ध में मिली हार के बाद भी रूस ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण नहीं किया था. इसके परिणामस्वरूप प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लेना रूस के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ. रूस में हताहत हुए लोगों की संख्या किसी भी अन्य राष्ट्र की तुलना में कहीं अधिक थे.
 
रूसी लोगों में इस युद्ध में शामिल होने को लेकर कोई उत्साह नहीं था. और जब ज़ार निकोलस ने व्यक्तिगत रूप से युद्ध में पूर्वी मोर्चे की कमान संभालने का फैसला किया तब तनाव और भी बढ़ गया. उस समय ज़ारिना एलेक्जेंड्रा को शासन का प्रभारी बनाया गया था.

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फरवरी क्रांति (ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च)

पेत्रोग्राद में महिला कपड़ा श्रमिकों ने एक शहरव्यापी हड़ताल का नेतृत्व किया जिसके बाद रोटी और ईंधन की कमी को लेकर दंगे हुए. लगभग 200,000 कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए. पहले तो सैनिकों ने दंगाइयों को गोली मारने के आदेश का पालन किया लेकिन बाद में वो भी उनका साथ देने लगे. सैनिकों ने अपने कमांडिंग अधिकारियों पर गोलियां चलाईं और खुद भी विद्रोह में शामिल हो गए.
इसके बाद ज़ार निकोलस II को अपना सिंहासन छोड़ने के लिए मजबूर किया. एक साल बाद क्रांतिकारियों ने निकोलस और उसके परिवार को मौत के घाट उतार दिया. रोमानोव्स का ज़ारिस्ट शासन, जो तीन शताब्दियों में रूस में चल रहा था, अंततः ध्वस्त हो गया.
1903 में, क्रांतिकारी दो समूहों में विभाजित हो गए- मेंशेविक और बोल्शेविक
  • मेंशेविक क्रांति के लिए व्यापक आधार पर लोगों का समर्थन चाहते थे.
  • बोल्शेविक कम संख्या में प्रतिबद्ध क्रांतिकारी चाहते थे जो कि रूस में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर सकने को तैयार हों.
बोल्शेविकों के नेता व्लादिमीर लेनिन थे. 1900 की शुरुआत में, लेनिन ज़ारिस्ट शासन द्वारा गिरफ्तारी से बचने के लिए पश्चिमी यूरोप भाग गए, लेकिन वहां से भी उन्होंने अन्य बोल्शेविकों के साथ संपर्क बनाए रखा था.

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अक्टूबर क्रांति (ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार नवम्बर)

व्लादिमीर लेनिन जब रूस लौट आए तो उन्होंने केरेन्स्की की सरकार के खिलाफ तख्तापलट की तैयारी शुरू करने के लिए कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया.
लेनिन के अधीन नई सरकार सैनिकों, किसानों और श्रमिकों की एक परिषद से बनी थी. बोल्शेविकों और उनके सहयोगियों ने पूरे सेंट पीटर्सबर्ग और रूस में प्रमुख स्थानों पर कब्जा कर लिया और जल्द ही लेनिन के प्रमुख के साथ एक नई सरकार बनाई और खुद को 'कम्युनिस्ट पार्टी' नाम दिया. लेनिन दुनिया के पहले कम्युनिस्ट राज्य के तानाशाह बने.
 

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