What is Commonwealth Games Queen's Baton : कॉमनवेल्थ गेम्स क्वीन्स बैटन रिले

Safalta Experts Published by: Kanchan Pathak Updated Thu, 28 Jul 2022 11:05 PM IST

Highlights

पिछले साल भारतीय खिलाडियों द्वारा टोकियो ओलंपिक में ऐतिहासिक प्रदर्शन करने के बाद इन कॉमनवेल्थ खेलों में भी उनसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही है. आइए जानते हैं कि हर चार साल के बाद आयोजित किए जाने वाले इन खेलों का इतिहास क्या है ? क्वींस बैटन रिले क्या है, इन खेलों को आयोजित क्यों किया जाता है तथा इन खेलों में कौन कौन से देश हिस्सा लेते हैं ?

28 जुलाई यानि आज से इंग्लैंड के बर्मिंघम सिटी में कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 का आयोजन किया जा रहा है. कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 क्वीन्स बैटन रिले सभी 72 देशों और क्षेत्रों में अपनी यात्रा पूरी करने के बाद बर्मिंघम यूके में अपने गंतव्य पर पहुंच चुकी है. पिछले साल भारतीय खिलाडियों द्वारा टोकियो ओलंपिक में ऐतिहासिक प्रदर्शन करने के बाद इन कॉमनवेल्थ खेलों में भी उनसे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही है. आइए जानते हैं कि हर चार साल के बाद आयोजित किए जाने वाले इन खेलों का इतिहास क्या है ? क्वींस बैटन रिले क्या है, इन खेलों को आयोजित क्यों किया जाता है तथा इन खेलों में कौन कौन से देश हिस्सा लेते हैं ? अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now. / GK Capsule Free pdf - Download here

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क्वींस बैटन रिले की शुरुआत

क्वींस बैटन रिले की शुरुआत साल 1958 में की गई थी. क्वींस बैटन रिले हर 4 साल के बाद आयोजित होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स के स्पोर्ट्स और कल्चर को कई देशों में पहुँचाने का काम करती है. परम्परागत रूप से यह क्वींस बैटन रिले ब्रिटेन के बकिंघम पैलेस से शुरू होती है. इस रिले यानि प्रसारण में एथलीट के लिए क्वीन एलिजाबेथ का एक मैसेज होता है. और इस मैसेज को केवल ओपनिंग सेरेमनी में हीं पढ़ा जा सकता है. इस मैसेज को पढ़ने के साथ ही रिले समाप्त हो जाता है तथा गेम्स शुरू हो जाते हैं.
 

कौन कौन से देश लेते हैं हिस्सा

दरअसल कॉमनवेल्थ गेम्स में केवल वही देश हिस्सा लेते हैं जो कभी न कभी ब्रिटिश साम्राज्य के गुलाम होते थे. प्रथम आयोजन की बात करें तो पहली बार साल 1930 में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन कनाडा में किया गया था जिसमें मात्र 11 देशों के कुल 400 खिलाडियों ने हीं प्रतिभागिता की थी.
 

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कितनी बार बदला गया नाम

शुरुआत में इस खेल का नाम ब्रिटिश एम्पायर गेम्स हुआ करता था. बाद में कई देशों और खिलाडियों ने इस खेल के नाम पर आपत्ति जताई और कहा कि ब्रिटिश अम्पायर गेम्स के नाम में गुलामी की झलक आती है. यही नहीं ब्रिटिश अम्पायर गेम्स के नाम को कई देशो ने अपने स्वाभिमान और राष्ट्रीय गौरव के खिलाफ़ बताया. घोर विरोध के चलते साल 1954 में ब्रिटिश अम्पायर गेम्स का नाम बदल कर ब्रिटिश अम्पायर कॉमनवेल्थ गेम्स कर दिया गया. परन्तु विरोध कायम रहा क्योंकि ब्रिटिश साम्राज्य के शाषण की क्रूर झलक इन नामों से अभी भी नहीं मिटी थी. फिर इसके बाद वर्ष 1978 में इन खेलों का नाम सर्वसम्मति से कॉमनवेल्थ गेम्स यानि राष्ट्र मंडल खेल कर दिया गया.
 

भारत और कॉमनवेल्थ गेम्स

पहली बार भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स में साल 1934 में हिस्सा लिया था. भारत के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स में पहला मेडल जीतने वाले खिलाड़ी का नाम था राशिद अनवर. राशिद अनवर ने साल 1934 में पुरुषों की 74 किलोग्राम फ्रीस्टाइल कुश्ती इवेंट में कांस्य पदक जीत कर अपने नाम किया था.
इसके अलावा गोल्ड मेडल की बात करें तो राष्ट्रमंडल खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले भारतीय थे महान धावक मिल्खा सिंह. उन्होंने साल 1958 में पुरुषों की 440 यार्ड इवेन्ट में स्वर्ण पदक जीत कर इतिहास रच दिया था.
 

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सबसे ज्यादा जीते निशानेबाज़ी में मेडल

कॉमनवेल्थ गेम्स के इतिहास में अब तक भारत ने सबसे ज्यादा निशानेबाज़ी में पदक जीता है. भारत के निशानेबाजों ने राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए सबसे ज्यादा 135 बार मेडल जीते हैं.

सबसे ज्यादा पदक जीतने वाला खिलाड़ी

पिस्टल शूटर जसपाल राणा ने कुल मिला कर 15 मेडल जीते हैं. इन पदकों में 9 स्वर्ण, 4 रजत और 2 कांस्य पदक शामिल है. साल 2010 में दिल्ली में खेले गए कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत ने शानदार तरीके से कुल 101 मेडल जीते थे. इन पदकों में 39 स्वर्ण पदक, 26 रजत पदक और 36 कांस्य पदक शामिल थे. और इसी के साथ मेडल टैली में भारत दूसरे स्थान पर रहा था.
 
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28 जुलाई से 8 अगस्त

28 जुलाई से 8 अगस्त तक इंग्लैंड के बर्मिंघम सिटी में कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 का आयोजन होगा. क्वीन्स बैटन रिले ओलंपिक मशाल के साल इंग्लैंड की रानी का एक सन्देश भी होगा.
इस बार के कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय खिलाडियों से उम्मीद है कि वे साल 2010 के रिकार्ड को पार करते हुए इस बार फिर से एक नया इतिहास बनाएँगे. 

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