NCERT CBSE Class 10th Hindi (Kritika) Chapter 2: जॉर्ज पंचम की नाक

Safalta Expert Published by: Sylvester Updated Mon, 13 Jun 2022 01:33 PM IST

Highlights

NCERT CBSE Class 10th Hindi (Kritika) Chapter 2: जॉर्ज पंचम की नाक

नाक जो कि इज़्ज़त का प्रतीक मानी जाती है। इस संदर्भ के माध्यम से लेखक ने व्यंग्य करते हुए सत्ता एवं सत्ता से जुड़े सभी लोगों की मानसिकता को प्रदर्शित किया है , जो अंग्रेज़ी हुकूमत को कायम रखने के लिए भारतीय नेताओं की नाक काटने को तैयार हो जाते हैं। लेखक ने इस रचना के माध्यम से बताया है कि रानी का भारत आगमन महत्त्वपूर्ण विषय है जिसके लिए जॉर्ज पंचम की नाक मूर्ति पर होना अनिवार्य है , क्योंकि वह रानी के आत्मसम्मान के लिए अनिवार्य है। इसके साथ यह रचना पत्रकारिता जगत के लोगों पर भी व्यंग्य करती है एवं सफल पत्रकार की सार्थकता को भी उजागर करती है। इसमें सरकारी तंत्र का लोगों द्वारा रानी के सम्मान में की गई तैयारियों का वर्णन किया गया है।

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NCERT Solutions for Chapter 2: जॉर्ज पंचम की नाक


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Check out Frequently Asked Questions (FAQs) for Chapter 2: जॉर्ज पंचम की नाक

आज की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?

आज की पत्रकारिता युवा पीढी पर निम्नलिखित प्रभाव डालती है |
  • आज की युवा पीढी नए चकाचौंध से तुरत प्रभावित होती है | यदि सामने वाला व्यक्ति पश्चिमी सभ्यता से ज्यादा प्रभावित है तो स्वाभाविक रूप से वह युवा उनके रहन- सहन का वर्णन करेगा जिसका प्रभाव उसके जीवन पर भी स्वाभाविक रूप से परेगा ही |
  • इससे समाज का संतुलन बिगड़ने और आदर्शों को नुकसान पहुँचने का डर रहता है। इस तरह की पत्रकारिता युवा पीढ़ी को भ्रमित एवं कुंठित करती है। जैसा सर्विदित है कि युवा पीढ़ी देश की रीढ़ है, उसके कमज़ोर होने से देश का संतुलन बिगड़ जाएगा युवा पत्र-पत्रिकाओं को पढ़कर चर्चित हस्तियों के खान-पान एवं पहनावे को अपनाने पर मजबूर हो जायेंगे । वे अपनी इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए उचित-अनुचित मार्ग अपनाने में भी संकोच नहीं करेंगे । इससे दिखावा, बनावटीपने और हिंसा आदि बढ़ेगी , क्योंकि पत्रकारिता दबंग और अपराधी छवि वाले व्यक्तियों को नायक की तरह प्रस्तुत करती है।

जॉर्ज पंचम की नाक पाठ में कोई भी नाक फिट होने काबिल नहीं निकली यह कह कर लेखक किस ओर संकेत करता है?

जॉर्ज पंचम की लाट पर नाक को पुनः लगाने के लिए भारत देश के सभी नेताओं की नाकों का नाप लिया गया | उन सबकी नाक जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी निकली | इसके बाद सन बयालीस में बिहार के सेक्रेटरिएट के सामने शहीद हुए बच्चों की स्थापित मूर्तियों की नाकों को भी नापा गया, परंतु वे सभी बड़ी थीं। इस कथन का अभिप्राय यह है कि जॉर्ज पंचम-गांधी, पटेल, गुरुदेव रवींद्र नाथ, सुभाष चंद्र बोस, आज़ाद, बिस्मिल, नेहरू, लाला लाजपतराय, भगत सिंह की तुलना में नगण्य था। अर्थात् यह कहा जा सकता है कि जॉर्ज पंचम का सम्मान देश के महान नेताओं और शहीद हुए बच्चों के समक्ष कोई मायने नहीं रखता |

जॉर्ज पंचम की नाक पाठ के आधार पर सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालिए।

'जॉर्ज पंचम की नाक’ पाठ में जिस सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली को दर्शाया गया है वह बड़ी ही संकीर्ण सोच को व्यक्त करती है | सरकारी तंत्र परतंत्रता की मानसिकता से ग्रस्त है। किसी भी कार्य के प्रति सरकारी तंत्र जागरूक नहीं है। अवसर आने पर ही उनकी निद्रा खुलती है। सरकारी कार्यप्रणाली में मीटिंगें प्रमुख हैं। हर छोटी-से-छोटी बात पर मीटिंग बुलाई जाती है जिसमें परामर्श होता है, विचार विमर्श होता है परंतु उसके अनुरूप कार्य नहीं होता | सभी विभाग एक-दूसरे पर कार्य थोपते रहते हैं। व्यर्थ का दिखावटीपन, चिंता, चापलूसी की प्रवृत्ति पूरी कार्यप्रणाली में कूट-कूट कर भरी हुई है। पाठ में रानी एलिजाबेथ के भारत आने पर सम्पूर्ण सरकारी तंत्र अपने सभी काम-काज छोड़कर उनकी तैयारी और स्वागत मे लग जाता है | जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता और बदहवासी दिखाई देती है संपूर्ण पाठ में दिखाई देती है वह सरकारी तंत्र की अयोग्यता, अदूरदर्शिता, चाटुकारिता और मूर्खता को दर्शाती है।

नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का घोतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई हैं?

नाक मान – सम्मान एवं प्रतिष्ठा का सदा से ही प्रतीक रही हैं। इसी नाक को विषय बनाकर लेखक ने देश की सरकारी व्यवस्था, मंत्रियों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों की गुलाम मानसिकता पर करारा प्रहार किया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष में अंग्रेजों की करारी हार को उनकी नाक कटने का प्रतीक माना, तथापि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी भारत में स्थान-स्थान पर अंग्रेजी शासकों की मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो स्वतंत्र भारत में हमारी गुलाम या परतंत्र मानसिकता को दिखाती हैं। हिंदुस्तान में जगह – जगह ऐसी ही नाकें खड़ी इन नाकों तह यहाँ के लोगों के हाथ पहुँच गए थे , तभी तो जार्ज पंचम की नाक गायब हो गयी थी |जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक एकाएक गायब होने की खबर ने सरकारी महकमों की रातों की नींद उड़ा दी। सरकारी महकमें रानी एलिजाबेथ के आगमन से पूर्व किसी भी तरह जार्ज पंचम की नाक लगवाने का हर संभव प्रयास करते हैं। इसी प्रयास में वह देश के महान देशभक्तों एवं शहीदों की नाक तक को उतार लाने का आदेश दे देते हैं किन्तु उन सभी की नाक जार्ज पंचम की नाक से बड़ी निकली, यहाँ तक कि बिहार में शहीद बच्चों तक की नाक जार्ज पंचम से बड़ी निकलती है।अर्थात यहाँ के नेता एवं बच्चों का सम्मान जार्ज पंचम से अधिक था |

जॉर्ज पंचम की नाक सम्बन्धी लम्बी दास्तान को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

  • इस पाठ में सरकारी तंत्र के खोखलेपन तथा अवसरवादिता को अत्यंत प्रतीकात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यह लेख भारत के अधिकारियों की स्वाभिमान शून्यता पर करारा व्यंग्य है जो अभी भी गुलामी की मानसिकता से जकड़े हुए हैं |
  • यह एक गंभीर समस्या थी कि इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट से उसकी नाक गायब हो गई वह भी तब जब इंग्लैण्ड से महारानी एलिजाबेथ और प्रिंस फिलिप का भारत भ्रमण पर आने वाले थे ।
  • इस मूर्ति पर नाक लगवाने के लिए गम्भीरतापूर्वक प्रयास किए गए, जिसके लिए मूर्तिकार को बुलाया गया, फाइलों में मूर्ति के पत्थर से सम्बन्धित जानकारी ढूँढे गए, मूर्तिकार द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों और खानों का दौरा किया गया महापुरुषों तथा स्वाधीनता सेनानियों की मूर्तियों के साथ-साथ बिहार में शहीद हुए बच्चों की नाकों का नाप लिया गया और उपयुक्त नाक न मिलने पर ज़िंदा व्यक्ति का नाक लगाने का निर्णय लिया गया | इसकी परिणति एक जिंदा व्यक्ति की नाक लगाए जाने से होती है।

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