‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा' नामक कहानी में बनारस में गानेवालियों की परंपरा (गौनहारिन परंपरा) का वर्णन किया गया है। दुलारी नामक एक गौनहारिन का परिचय 15 वर्षीय युवक टुन्नू से एक संगीत कार्यक्रम में होता है जो संगीत में उसका प्रतिद्वंद्वी था।
टुन्नू उससे प्रेम करने लगता है और इसी बीच टुन्नू का यह व्यक्तिगत प्रेम देशप्रेम में परिवर्तित हो जाता है तथा एक आंदोलन में भाग लेने के कारण सरकार द्वारा उसकी हत्या कर दी जाती है। इस घटना को एक संवाददाता अपने संपादक से समाचार पत्र में छापने की अनुमति माँगता है किंतु संपादक मना कर देता है।
इस प्रकार समाज का सच सामने लाने वाले तथाकथित संपादक का दोहरा चरित्र सामने लाने में यह कहानी मदद करती है। साथ ही इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि समाज के हर वर्ग ने अपने सामर्थ्य के अनुसार देश की आज़ादी में अपना योगदान दिया था।
Source: safalta.com
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शहनाई के साथ बजाए जाने वाले तबले जैसे बाजे को दुक्कड़ कहते हैं।
टुन्नू ने कजरी दंगल में बजरहीड़ा वालों की ओर से भाग लिया।
टुन्नु के प्रति दुलारी का उपेक्षा भाव कृत्रिम था।
अली सगीर ने दुलारी के घर का नंबर मन ही मन नोट कर लिया।
दुलारी गाने बजाने का काम करती थी।