प्रसिद्ध साहित्यकार अज्ञेय ने इस निबंध में यह स्पष्ट किया है कि रचनाकार की भीतरी विवशता ही उसे लेखन के लिए मजबूर करती है और लिखकर ही रचनाकार उससे मुक्त हो पाता है । अज्ञेय का यह मानना है कि प्रत्यक्ष अनुभव जब अनुभूति का रूप धारण करता है , तभी रचना पैदा होती है । अनुभव के बिना अनुभूति नहीं होती , परंतु यह आवश्यक नहीं कि हर अनुभव अनुभूति बने । अनुभव जब भाव जगत् और संवेदना का हिस्सा बनता है , तभी वह कलात्मक अनुभूति में रूपांतरित होता है । ‘मैं क्यों लिखता हूँ ?' लेखक के अनुसार यह प्रश्न बड़ा सरल प्रतीत होता है पर यह बड़ा कठिन भी है । इसका सच्चा तथा वास्तविक उत्तर लेखक के आंतरिक जीवन से संबंध रखता है । उन सबको संक्षेप में कुछ वाक्यों में बाँध देना आसान नहीं है ।
Source: safalta.com
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कौन सी रचना भीतरी प्रेरणा का फल है और कौन सी बाहरी दबाव का
हिरोशिमा की यात्रा के समय एक पत्थर पर उभरी मानव की छाया से।
अनुभूति अनुभव से गहरी चीज़ है।
हिरोशिमा में आहत लोगों को देखकर
लेखक लिखकर अपने भीतर की विवशता को पहचानता है।