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भारत के शुरुआती और प्रमुख समाचार पत्रों के कुछ उदाहरण हैं: पयाम-ए-आजादी या नाना साहेब पेशवा द्वारा स्वतंत्रता का संदेश (1857), जी सुब्रमनियम अय्यर द्वारा द हिंदू और स्वदेशसमित्रन, सुरेंद्रनाथ बनर्जी द्वारा द बंगाली, दादाभाई नौरोजी द्वारा वॉयस ऑफ इंडिया, केसरी (मराठी में) और बालगंगाधर तिलक के द्वारा महारत्ता (अंग्रेजी में).
भारतीय प्रेस का योगदान -
लगभग 1870 से 1918 तक के राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रारंभिक चरण में राजनीतिक प्रचार और शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया, न कि जन आंदोलन या खुली बैठकों के माध्यम से जनता को सक्रिय रूप से संगठित करने में.
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जनता को जोड़ा : उस समय अखबार का प्रभाव शहरों और कस्बों तक हीं सीमित नहीं था बल्कि ये समाचार पत्र सुदूर गाँवों तक भी पहुँचे, जहाँ प्रत्येक समाचार और संपादकीय को 'स्थानीय पुस्तकालयों' में पढ़ा जाता था और इस पर चर्चा की जाती थी. प्रेस ने अपनी व्यापक पहुंच के द्वारा देश की जनता को एक साथ जोड़ा. बाल गंगाधर तिलक, अपने समाचार पत्रों के माध्यम से निम्न मध्यम वर्गों, किसानों, कारीगरों और श्रमिकों को कांग्रेस के पाले में लाने की वकालत करने वाले पहले लोगों में से थे.
जागरूकता फैलाई : इन समाचार पत्रों में सरकारी अधिनियमों और नीतियों की आलोचनात्मक समीक्षा की गई. इसने न सिर्फ़ सरकार की विरोधी संस्था के रूप में काम किया बल्कि लोगों को औपनिवेशिक शोषण के बारे में भी जागरूक किया. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपने शुरुआती दिनों में अपने प्रस्तावों और कार्यवाही के प्रचार के लिए पूरी तरह से प्रेस पर हीं निर्भर थी.
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सरकार द्वारा प्रतिबंध –
तब प्रेस की शक्ति से घबड़ाकर ब्रिटिश सरकार ने अपनी ओर से कई कड़े कानून बनाए थे, जैसे कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए, जिसमें यह प्रावधान था कि भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असंतोष पैदा करने की कोशिश करने वाले को तीन वर्षों तक की या आजीवन या किसी भी अवधि के लिए कैद किया जा सकता है.
1878 में वेर्नाक्युलर प्रेस एक्ट (वीपीए) लाया गया जिसे कि स्थानीय भाषा के समाचारपत्रों को "बेहतर तरीके से नियंत्रित करने" और राजद्रोह सम्बंधित लेखन करने वाले को दण्डित करके उनकी आवाज़ दबाने के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया था. इस एक्ट को "गैगिंग एक्ट" का उपनाम दिया गया. अधिनियम ने अंग्रेजी और स्थानीय भाषा के प्रेस के बीच भेदभाव तो किया हीं, इन्हें अपील करने तक का कोई अधिकार नहीं दिया. वीपीए के तहत सोम प्रकाश, भरत मिहिर और ढाका प्रकाश के समाचार पत्रों के खिलाफ कार्यवाही की गई. अमृता बाजार पत्रिका वीपीए से बचने के लिए रातोंरात अंग्रेजी अखबार बन गई. 1883 में, सुरेंद्रनाथ बनर्जी जेल जाने वाले पहले भारतीय पत्रकार बने.
निष्कर्ष –
प्रेस की भूमिका अत्यंत हीं महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसने ब्रिटिश सरकार के प्रति भारत की उस असंतोष भरी आवाज़ को व्यक्त करने का एकसशक्त माध्यम प्रदान किया जो औपनिवेशिक अधिकारियों के प्रचलित आख्यान को झूठा मानता था और अपना विरोध दर्ज कराना चाहता था. तिलक और गांधी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने अपने समाचार पत्रों और संपादकीय के माध्यम से भारत के सुदूर हिस्सों के पाठकों तक पहुंचने का लाभ उठाया. इस प्रकार, प्रेस एक ऐसी संस्था बना जिसने राष्ट्रवादी भावना पैदा करने और एक "राष्ट्र" द्वारा स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए जनता को लामबंद करने का काम किया. प्रेस एक ऐसी कल्पना बनी जिसने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जनता के दिमाग को समान रूप से प्रभावित किया था.
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