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गंगा राजवंश –
दूसरी शताब्दी में इतिहास के मैसूर में गंगा राजवंश का अधिकार था और इस राजवंश ने 1004 तक मैसूर पर शासन किया. अगला राजवंश जिसने मैसूर के इतिहास के पन्नों पर अपनी छाप छोड़ी, वह चोल थे जिन्होंने लगभग एक शताब्दी तक इस क्षेत्र पर शासन किया. चोलों के बाद चालुक्य और होयसाल थे. 11वीं और 12वीं शताब्दी के कई शिलालेख मैसूर में पाए जाते हैं, जो इस क्षेत्र में होने वाली घटनाओं के बारे में जानकारियाँ प्रदान करते हैं.सभी सरकारी परीक्षाओं के लिए हिस्ट्री ई बुक- Download Now
मैसूर का इतिहास –
मैसूर का इतिहास बताता है कि 1399 ई. में मैसूर में यदु वंश सत्ता में आया था. विजयनगर साम्राज्य के एक सामंत, यदु वंश ने मैसूर के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. मैसूर के राजा बेट्टादा चामराजा वोडेयार ने मैसूर के किले का पुनर्निर्माण किया और अपना मुख्यालय बनाया और शहर को 'महिशुरु नगर' कहा जिसका अर्थ है महिशूर का शहर. वर्ष 1610 मैसूर के इतिहास में एक मील का पत्थर था क्योंकि इस वर्ष राजा वोडेयार ने अपनी राजधानी को मैसूर से श्रीरंगपट्टनम स्थानांतरित कर दिया था. 1761 से 1799 तक मैसूर पर हैदर अली और उनके बेटे टीपू सुल्तान का शासन था. 1761 में, हैदर अली, जो सन 1761 ई. में एक सैनिक हुआ करते थे, ने मैसूर के राजवंश को उखाड़ फेंका और उस राज्य पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया. हैदर अली (1760-1782) ने स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए निजाम और मराठों के साथ लड़ाई लड़ी. उन्होंने फ्रांसीसी और निजाम के साथ गठबंधन किया और 1767-69 ई. में प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध में अंग्रेजों को करारी हार दी. यही नहीं उन्हें संधि के रूप में शर्तों को स्वीकार करने के लिए भी मजबूर कर दिया. यह संधि थी अप्रैल 1769 की मद्रास की संधि.जानें एक्सिस और सेंट्रल पॉवर्स क्या है व इनमें क्या अंतर हैं
सन 1780-84 ई. में दूसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान अंग्रेजों की बहुत अपमानजनक हार हुई और उन्होंने मराठा और निजाम के साथ गठबंधन किया. 1782 में द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के दौरान हैदर अली की मृत्यु हो गई. टीपू सुल्तान, हैदर अली (1782-1799) का पुत्र था, जिसने अपने प्रदेशों को बचाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी. वह पहले भारतीय राजा थे जिन्होंने अपने प्रशासन में पश्चिमी तरीकों को लागू करने का प्रयास किया. उन्होंने सैन्य प्रशिक्षण और संगठन के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल किया और आधुनिक हथियारों के उत्पादन के लिए एक कार्यशाला की स्थापना की. उन्होंने मराठा और निज़ाम की सहयोगी सेनाओं के साथ अंग्रेजों के खिलाफ तीसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध (1790-92 ई.) लड़ा. उन्होंने अंग्रेजोंके साथ श्रीरंगपट्टनम की संधि की थी, और जिसके अनुसार उन्हें मैसूर के आधे क्षेत्र को विजयी सहयोगियों के सामने आत्मसमर्पण करना पड़ा. चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में लड़ने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई. टीपू सुल्तान की मृत्यु तक मैसूर दूसरा सबसे महत्वपूर्ण शहर बना रहा. एंग्लो मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान की हार के बाद मैसूर के इतिहास ने एक बार फिर नया मोड़ लिया.
मैसूर और कला -
मैसूर साम्राज्य के तहत, दक्षिण भारत में ललित कलाओं का विकास हुआ और साथ ही वीणा शेषन्ना और टी.चौदिया जैसे प्रसिद्ध कलाकारों और संगीतकारों को संरक्षण मिला, जो कर्नाटक संगीत का केंद्र बन गए। यह अवधि मैसूर चित्रकला, भारत-यूरोपीय वास्तुकला और कन्नड़ साहित्य के महत्वपूर्ण विकास की गवाह है, जिसमें पारंपरिक धार्मिक विषयों और संगीत ग्रंथों, नाटक और रंगमंच जैसे विषयों पर लेखन शामिल हैं.बाबरी मस्जिद की समयरेखा- बनने से लेकर विध्वंस तक, राम जन्मभूमि के बारे में सब कुछ
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