Modern History of Bihar: जानिए बिहार के आधुनिक इतिहास के बारे में

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Wed, 13 Apr 2022 01:44 PM IST

Source: Safalta

सन 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद ओरंगजेब का पोता राजकुमार अजीम-ए-शान बिहार का बादशाह बना. अज़ीम पहले बिहार का सूबेदार था. देखा जाए तो यही वह काल था जहाँ से बिहार के आधुनिक इतिहास में संक्रमण काल का आरम्भ होता है. चूँकि गंगा नदी बिहार के बीचोंबीच से होकर गुजरती है और इस तरह हर साल गंगा के साथ बहकर आई नई मिट्टी की वजह से यहाँ के मिट्टी की उर्वरता बढ़ती जाती है इसलिए बिहार दुनिया के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है. बिहार प्राचीन काल से हीं अपने कपास, कपड़ा, साल्टपीटर और नील के लिए प्रसिद्ध रहा है. यही कारण है कि बिहार प्राचीन से लेकर मध्यकालीन समय तक भारत के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्रों में से एक रहा है. और इसलिए बाहरी घुसपैठियों की नज़रें बिहार की समृद्धता पर टिकी रहती थी. ब्रिटिश कालीन भारत के समय में बिहार बंगाल के प्रेसीडेंसी का एक हिस्सा हुआ करता था और तब यह कलकत्ता के द्वारा शासित था. विभिन्न धर्मों के धर्म गुरु भी अपने धर्मों के प्रचार के लिए बिहार की धरती पर आए. जैसे - अगर आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.
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सिख धर्म और बिहार –


सिखों की बात करें तो सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह का जन्म पटना में 26 दिसम्बर 1666 को हुआ था. लेकिन उससे पहले सत्रहवीं शताब्दी में गुरु तेग बहादुर का बिहार आगमन हुआ था. उससे भी पहले सिख धर्म के प्रतिस्थापक तथा पहले गुरु गुरु नानक देव भी पटना, मुँगेर, राजगीर, गया आदि स्थानों का भ्रमण कर चुके थे.

इस्लाम धर्म और बिहार –

इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए आदि काल से बिहार में कई सूफ़ी संतों का आगमन हुआ. इनमे चिश्ती, महमूद बिहारी, सैयद ताजुद्दीन आदि प्रमुख थे. मखदूय सफूउद्दीन मनेरी की मज़ार आज भी बिहारशरीफ़ में मौजूद है. और अब बात करते हैं बाहरी घुसपैठियों की जो बिहार की समृद्धता की लालच में यहाँ आए -

बिहार में यूरोपीय कंपनियों की घुसपैठ -

1. सबसे पहले यूरोपीय जिन्होंने बिहार में प्रवेश किया था, पुर्तगाली थे .
2. ये लोग मुख्य रूप से कपास उत्पादक क्षेत्र के लिए कपड़ा और मसालों का व्यापार करते थे.
3. ब्रिटिश कालीन भारत में जब बिहार और बंगाल एक हुआ करता था हुगली वह पहला स्थान था जहां पर पुर्तगालियों ने सन 1579-80 में अपना कारखाना स्थापित किया था. तब पुर्तगाली कप्तान पेड्रो तवारेस को वहाँ कारखाना खोलने की अनुमति मुग़ल बादशाह अकबर ने दी थी.
4. इसके बाद सन 1599 में, पुर्तगाल के व्यापारियों ने बंदेल में एक कॉन्वेंट स्कूल और एक चर्च का निर्माण भी कराया था जो कि बंगाल का पहला ईसाई चर्च था. इस चर्च को आज 'बंदेल चर्च' के नाम से जाना जाता है.
5. पुर्तगालियों के बाद बिहार आने वाले दूसरे यूरोपीय ब्रिटिश (अंग्रेज) थे. अंग्रेजों ने 1620 में पटना में आलमगंज में अपना कारखाना खोला लेकिन यह कारखाना एक साल में हीं 1621 में बंद हो गया. इसके बाद सन 1651 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने फिर से इस कारखाने को पुनर्जीवित किया जो फिल वक़्त गुलजार बाग में गवर्निंग प्रिंटिंग प्रेस में बदल चुका है.
6. सन 1632 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी पटना में अपना कारखाना स्थापित किया. यह कारखाना अब पटना कलेक्ट्रेट में तब्दील हो चुका है.
7. इसके बाद सन 1774 में, डेन ईस्ट इंडिया कंपनी (डेनमार्क कि कम्पनी) ने पटना में नेपाली कोठी में अपना कारखाना स्थापित किया था.

बिहार तथा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी यानि अंग्रेजी घुसपैठ -

1. बिहार में बक्सर की लड़ाई (22 अक्टूबर 1764) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की दमनकारी जीत थी जो अंग्रेजों ने अपने विभाजनकारी सोच से जीती थी. यह लड़ाई  ब्रिटिश सेना के हेक्टर मुनरो और शाह आलम द्वितीय, मीर कासिम (अवध के नवाब) और शुजा-उद-दौला (बंगाल के नवाब) की संयुक्त सेना के बीच लड़ा गया था.
2. इस युद्ध के बाद अंग्रेजों ने मुगल शासक शाह आलम द्वितीय और शुजा-उद-दौला के साथ बंगाल और बिहार के दीवानी अधिकारों के लिए इलाहाबाद की दो अलग-अलग संधियों पर हस्ताक्षर किए थे. यहीं से अंग्रेजों ने बिहार में लगान वसूली का काम अपने हाथ में ले लिया था.
3. बिहार में पड़े भीषण अकाल के बाद वारेन हेस्टिंग्स (भारत के गवर्नर-जनरल) ने सन 1783 में अकाल से लड़ने के लिए पटना में गुंबद के आकार के अन्न भंडार गोलघर के निर्माण का आदेश दिया. गोलघर का निर्माण 1786 ई. में कैप्टन जॉन गार्स्टिन ने विशाल अन्न भंडार के रूप में किया.
4. लॉर्ड कॉर्नवालिस ने राजस्व का हिस्सा तय करने के लिए बंगाल, उड़ीसा और मद्रास में एक स्थायी भूमि बंदोबस्त की शुरुआत की. इस नियम के हिसाब से अंग्रेजों के लिए यह हिस्सा 10/11 वाँ था जबकि जमींदारों के लिए 1/11 वां.
5. जो जमींदारों के लिए व्यापक असंतोष का कारण था.
6. सन 1770 में ''पटना की राजस्व परिषद'' की स्थापना की गई थी. जिसका नाम बाद में बदल कर 1781 में 'बिहार राजस्व प्रमुख' कर दिया गया था.

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बिहार और 1857 का विद्रोह -

1. इस विद्रोह की शुरुआत 12 जून 1857 को देवघर जिले (अब झारखंड में) में 32वीं इन्फैंट्री रेजिमेंट के मुख्यालय में हुई थी. इस विद्रोह को मैकडॉनल्ड्स के द्वारा कुचल दिया गया.
2. 3 जुलाई को पटना में पीर अली के नेतृत्व में एक विद्रोह शुरू हुआ.
3. 25 जुलाई 1857 को बिहार में दानापुर छावनी में विद्रोह की व्यापक शुरुआत हुई. लेकिन दरभंगा, डुमराव और हटवा के महाराजाओं और उनके साथी जमींदारों ने  जनशक्ति और धन के साथ इस विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों की मदद की.
4. जगदीशपुर के रहने वाले बाबू कुंवर सिंह इस विद्रोह के सबसे महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय व्यक्ति थे जिन्होंने भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक गौरवशाली अध्याय लिखा. उन्होंने सक्रिय रूप से 4000 सैनिकों के सशस्त्र बल के एक बैंड का नेतृत्व किया. इसी के साथ उन्होंने और भी बहुत सी लड़ाइयों में जीत हासिल की. जुलाई 1857 में उन्होंने आरा पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया. इसके बाद उन्होंने नाना साहब की मदद से आजमगढ़ में ब्रिटिश सेना को धूल चटाया था.

बिहार में ब्रिटिश राज -

1. ब्रिटिश काल में अंग्रेजों के अधीन होकर भी बिहार खास कर पटना ने अपना खोया हुआ गौरव बरकरार रखा. ब्रिटिश शासन के दौरान बिहार व्यापार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक केंद्र के रूप में उभरा.
2.  ब्रिटिश भारत में 1912 तक बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी का एक हिस्सा रहा इसके बाद बिहार और बंगाल प्रांत को अलग अलग प्रांत के रूप में विभाजित कर दिया गया.
3. ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवस्था में सन 1905 के बाद से कई बदलाव हुए. जैसे दिल्ली ब्रिटिश भारत की राजधानी बन गई.
4. पटना को नए प्रांत की राजधानी बनाया गया और प्रशासनिक आधार के अनुरूप पटना शहर को पश्चिम की तरफ बढ़ाया गया. इस प्रकार बैंकपुर टाउनशिप ने बेली रोड के साथ मिलकर नया आकार लिया.
5. पटना में अंग्रेजों के द्वारा कई शैक्षणिक संस्थान बनाए गए. जैसे पटना कॉलेज, पटना साइंस कॉलेज, बिहार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज और पशु चिकित्सा कॉलेज पटना आदि.

बिहार और आंदोलन -

ब्रिटिश अत्याचारों के खिलाफ बिहार ने स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोहों और आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई. प्रमुख आंदोलनों की बात करें तो बहावी आन्दोलन, नोनिया विद्रोह, मुण्डा विद्रोह, लोटा विद्रोह, छोटा नागपुर का विद्रोह, ताना भगत आन्दोलन, तमाड़ विद्रोह, हो विद्रोह, कोल विद्रोह, भूमिज विद्रोह, संथाल विद्रोह, खरवार विद्रोह, सरदारी लड़ाई आदि समेत अनेक विद्रोहों की शुरुआत बिहार की धरती से हुई .

वहाबी आंदोलन -

1. बहावी आन्दोलन की शुरुआत 1820 ई. से 1870 ई. के बीच हुई.
2. 1828 से 1868 तक पटना में हाजी शरीयतुल्लाह वहाबी आंदोलन के प्रमुख नेता थे.
3. यह वहाबी आंदोलन सऊदी अरब के अब्दुल वहाब और दिल्ली के शाह वलीउल्लाह से प्रेरित था.

क्रांतिकारी आंदोलन -
1. सचिंद्रनाथ सान्याल द्वारा पटना में सन 1913 में अनुशीलन समिति की एक शाखा की स्थापना की गई थी. इस संगठन के नेतृत्व की जिम्मेदारी बीएन कॉलेज के बंकिमचंद्र मित्रा को दी गई थी.

चंपारण सत्याग्रह -

1. यह महात्मा गांधी की सविनय अवज्ञा आन्दोलन की लड़ाई की पहली जीत थी.
2. इस आन्दोलन की शुरुआत सन 1917 में हुई थी. यह महात्मा गांधी का पहला सत्याग्रह आंदोलन (पहला सविनय अवज्ञा आंदोलन) था.
3. राजकुमार शुक्ल और राम लाल शाह ने मोहन दास करमचंद गांधी को तिनकठिया की व्यवस्था को देखने के लिए आमंत्रित किया था. जिसमें सभी किसानों को अपनी कुल भूमि के 3/20 वें हिस्से पर नील की फसल उगाने के लिए अंग्रेजी शासन द्वारा मजबूर किया जाता था.
4. इसमें एम के गांधी के साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, आचार्य कृपलानी, डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा, महादेव देसाई, सी.एफ. एंड्रयूज, एच.एस. पोलक, राज किशोर प्रसाद, राम नवमी प्रसाद, शंभू शरण और धरणीधर प्रसाद भी शामिल थे.
5. इस आंदोलन के द्वारा ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के खिलाफ जांच करने के लिए एक समिति यानी चंपारण समिति बनाने के लिए मजबूर किया गया.महात्मा गांधी इस समिति के सदस्य थे और उन्होंने तिनकठिया प्रणाली के तहत होने वाले अत्याचारों पर किसानों को आश्वस्त किया. और इसे समाप्त किए जाने तथा किसानों को मुआवजा दिए जाने के लिए सत्याग्रह किया.
 

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असहयोग आंदोलन -

1. इस आंदोलन की शुरुआत मोहन दास करमचंद गांधी ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड, खिलाफत आंदोलन और रॉलेट एक्ट की पृष्ठभूमि में की थी.
2. 1920 अगस्त में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में बिहार कांग्रेस की बैठक हुई जिसमें असहयोग आन्दोलन के लिए प्रस्ताव पारित किया गया. आन्दोलन के लिए प्रस्ताव धरणीधर प्रसाद और शाह मोहम्मद जुबैर के द्वारा पेश किया गया था.
3. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने शाह मोहम्मद जुबैर और मजहर-उल-हक के साथ आंदोलन के लिए एक समिति का गठन किया.
4. मोहन दास करमचंद गांधी ने फरवरी 1922 में 'बिहार नेशनल कॉलेज' और इसके भवन 'बिहार विद्यापीठ' का उद्घाटन किया.
5. मजहर-उल-हक ने हिंदू-मुस्लिम एकता और गांधीवादी विचारधारा का प्रसार करने के लिए सितंबर 1921 में एक अखबार ''मातृभूमि'' की शुरुआत की.
6. प्रिंस ऑफ वेल्स (ब्रिटिश) ने बिहार का दौरा किया. इस दौरे का कांग्रेस के द्वारा विरोध किया गया.

स्वराज के लिए प्रमुख आंदोलन -

1. चित्तरंजन दास की अध्यक्षता में दिसम्बर 1922 में गया में अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन संपन्न हुआ.
2. इस सत्र के परिणामस्वरूप कांग्रेस के बीच एक वैचारिक गुट का निर्माण हुआ. जिसमे से एक विधान परिषद के प्रवेश का समर्थन करता था और दूसरा इसका विरोध करता था और गांधीवादी मार्ग का समर्थन करता था.
3. सी आर दास, मोतीलाल नेहरू और अजमल खान विधान परिषद के प्रवेश के समर्थक थे.
4. जबकि वल्लभाई पटेल, सी राजगोपालाचारी, और एमए अंसारी विधान परिषद के प्रवेश के विरुद्ध थे.
5. मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास ने स्वराज दल का गठन किया.
6. बिहार में स्वराज दल की एक शाखा बनी जिसका नेतृत्व श्रीकृष्ण सिंह ने किया.

साइमन कमीशन -

1. साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए एक सर्वदलीय बैठक का आयोजन किया गया. जिसका नेतृत्व अनुरा नारायण सिन्हा ने किया.
2. 12 दिसंबर 1928 को आयोग पटना पहुंचा.

बिहार में बहिष्कार आंदोलन -

1. बहिष्कार आंदोलन विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और भारतीय वस्तुओं को अपनाने का एक आंदोलन था.
2. कांग्रेस कमेटी ने बिहार में खादी को गांवों में दूर दूर तक पहुंचाने के लिए एक अभियान शुरू किया और साथ हीं पूर्ण स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता संकल्प) का हस्ताक्षर अभियान भी चलाया.

सविनय अवज्ञा आंदोलन -

1. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने नमक सत्याग्रह का मसौदा तैयार किया. आंदोलन की तारीख के रूप में 6 अप्रैल 1930 को चुना गया.
2. पं. जवाहरलाल ने सत्याग्रह की सफलता के लिए बिहार का दौरा किया. 31 मार्च से 3 अप्रैल, 1930 तक उन्होंने बिहार की यात्रा की.
3. यह आंदोलन चंपारण और सारण जिले से शुरू हुआ जो बाद में पटना, बेतिया, हाजीपुर और दरभंगा तक पहुंचा.
4. इस आंदोलन ने खादी के उपयोग पर जोर दिया और मादक पेय के खिलाफ एक कड़ा संदेश दिया.
5. पटना में स्वदेशी समिति का गठन किया गया.
6. आंदोलन में समाज के हर वर्ग तथा महिलाओं की भी भारी भागीदारी रही.
7. सच्चिदानंद सिन्हा, हसन इमाम और सर अली इमाम प्रमुख नेता रहे.
8. इसी समय बिहपुर सत्याग्रह भी शुरू कर दिया गया.  
9. डॉ. राजेंद्र प्रसाद और प्रो. अब्दुल बारी पर लाठीचार्ज के विरोध में राय बहादुर द्वारका नाथ ने बिहार विधान परिषद से अपना इस्तीफा दे दिया.
10. चंद्रवती देवी और रामसुंदर सिंह अन्य नेता थे जिन्होंने आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की.
11. चंपारण, भोजपुर, पूर्णिया, सारण और मुजफ्फरपुर महत्वपूर्ण जिले थे जहां यह आंदोलन खूब फला-फूला.
12. इस आंदोलन का क्रूर दमन किया गया और इसके लिए गोरखा पुलिस को लगाया गया था.

Countries were suspended from UN Human Rights Council

किसान सभा और बिहार -

1. 1922 में मुंगेर में मोहम्मद जुबैर एवं श्री कृष्ण सिंह द्वारा एक सभा आहूत की गई थी जिसे किसान सभा कहा गया.
2. बिहार में किसान सभा का गठन सन 1929 में स्वामी शाजानंद सरस्वती ने प्रांतीय जमींदारों के अत्याचारों के खिलाफ किसानों की शिकायतों को एक जगह पर जुटाने के लिए किया था.
3. जमींदारों के द्वारा किसानों को दबाने के लिए यूनाइटेड पॉलिटिकल पार्टी का गठन किया गया था.
4. बिहार किसान सभा 1933 में निर्मित की गई थी.
5. अखिल भारतीय किसान सभा का गठन 1936 में हुआ था. जिसके प्रेसीडेंट स्वामी शाजानंद सरस्वती और सेक्रेटरी एन.जी रंगा को बनाया गया था.
6. पंडित यमुना कारजी और राहुल सांकृत्यायन, जो स्वामी शाहजानंद सरस्वती के अनुयायी थे, ने 1940 में हिंदी साप्ताहिक "हुंकार" का प्रारम्भ किया. यह साप्ताहिक  बिहार में कृषि और किसान आंदोलन का मुखपत्र बन गया.

बिहार सोशलिस्ट पार्टी -

1. इस पार्टी का गठन सन 1931 में गंगा शरण सिन्हा, रामबृक्ष बेनीपुरी और रामानंद मिश्रा ने किया था.
2. 1934 में जयप्रकाश नारायण ने पटना के अंजुमन इस्लामिया हॉल में एक बैठक बुलाई जहाँ बिहार कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन  हुआ. आचार्य नरेंद्र देव इसके पहले अध्यक्ष और जय प्रकाश नारायण महासचिव बनाए गए.

बिहार में पहली कांग्रेस कैबिनेट -

1. भारत सरकार अधिनियम, 1935 द्वारा राज्य में संवैधानिक उपचार का अधिकार, प्रांतीय स्वायत्तता और केंद्र में दोहरे प्रशासन का प्रावधान किया गया. इन प्रावधानों के परिणामस्वरूप कई रचनात्मक कार्य हुए. जैसे - 152 चुनावी क्षेत्रों में चुनाव हुए. कांग्रेस ने 107 सदस्यों के साथ चुनाव लड़ा जिसमें से 98 सदस्य विजेता रहे.
2. विधान परिषद में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला जिसमें 8 उम्मीदवार विजयी रहे लेकिन श्रीकृष्ण सिंह ने सरकार बनाने से इनकार कर दिया. इसलिए, मोहम्मद यूनुस जो स्वतंत्र उम्मीदवारों के नेता थे, ने सरकार बनाई. और इस प्रकार, मोहम्मद यूनुस बिहार के पहले प्रधान मंत्री बने.
3. 20 जुलाई को श्रीकृष्ण सिंह ने कांग्रेस मंत्रिमंडल का गठन किया.
4. श्री रामदयालू सिंह और प्रो. अब्दुल बारी क्रमशः विधान परिषद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बने.
5. नवनिर्वाचित मंत्री ने प्रेस, पत्रिकाओं पर से प्रतिबंध हटाने, राजनीतिक बंदियों की रिहाई जैसे महत्वपूर्ण काम किए.
6. जब अंग्रेजों ने घोषणा की कि भारत भी द्वितीय विश्व युद्ध में भाग ले रहा है तब कांग्रेस ने इस निर्णय पर नाराजगी जताई और श्री कृष्ण सिंह ने अपना त्यागपत्र दे दिया.

जानिए बिहार के मध्यकालीन इतिहास के बारे में

भारत छोड़ो आंदोलन -

1. बिहार में कांग्रेस कमेटी ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में 31 जुलाई, 1942 को आंदोलन की दिशा में कार्रवाई की रूपरेखा तैयार की.
2. अंग्रेज इस आंदोलन को कुचलने के जबरदस्त प्रयास कर रहे थे. कई जगहों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने जैसे मुद्दों पर जिलाधिकारी ने डब्ल्यूसी आर्चर को फायरिंग के आदेश दिए.

बिहार के स्वतंत्रता सेनानी -

1. बिहार ने स्वतंत्रता आन्दोलन में स्वामी शाहजानंद सरस्वती, शहीद बैकुंठ शुक्ल, बियाहर बिभूति अनुराग नारायण सिंह, मौलाना मजहर-उल-हक, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, भद्र याजी, पंडित यमुना कारजी, डॉ. मघफूर अहमद अजाज़ी, उपेंद्र नारायण झा "आजाद" और प्रफुल्ल चाकी जैसे प्रसिद्ध नेता और क्रांतिकारी वीर दिए हैं.