Timeline of Babri Masjid: बाबरी मस्जिद की समयरेखा- बनने से लेकर विध्वंस तक, राम जन्मभूमि के बारे में सब कुछ

Safalta Experts Published by: Nikesh Kumar Updated Mon, 07 Feb 2022 06:01 PM IST

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जहाँ एक तरफ अयोध्या जमीन विवाद मामला देश के सबसे लंबे चलने वाले केसों में से एक रहा है, वहीँ बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि विवाद धार्मिक और राजनीतिक संघर्षों का एक बहुत बड़ा मुद्दा साबित हुआ. 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हेतु भूमिपूजन किया था जिसके पश्चात अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ हो चुका है. और 6 दिसंबर का दिन बाबरी मस्जिद विध्वंस दिवस के रूप में मनाया जाता है. यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं  FREE GK EBook- Download Now.
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भगवान राम का जन्मस्थान-

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयोध्या शहर भगवान राम का जन्मस्थान है, बाबरी मस्जिद विध्वंस का मुख्य मुद्दा जमीन पर कब्जे को लेकर था. इन्हीं दोनों मुख्य मुद्दों के चलते बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद धार्मिक और राजनीतिक संघर्ष का विषय इसलिए बना. हिंदू संगठन के विभिन्न समूहों ने दावा किया कि यह स्थान हिंदू देवता राम का जन्मस्थान है और इस मस्जिद को मंदिर के विध्वंस के बाद यहाँ बनाया गया. जबकि मुसलमानों का दावा है कि मस्जिद को विध्वंस के बाद नहीं बल्कि मंदिर के खंडहरों की मदद से बनाया गया था. यहां हम बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद मामले की पूरी टाइमलाइन दे रहे हैं. ताकि यह समझा जा सके कि कैसे और क्यों मुद्दे लंबे समय तक अनसुलझे रहते हैं.

बाबरी-मस्जिद निर्माण के पीछे का इतिहास-

बाबर को 1526 में इब्राहिम लोदी को हराने के लिए जब भारत आने का अनुरोध किया गया था. तब पूर्वोत्तर भारत की विजय के दौरान उसके एक सेनापति ने अयोध्या का दौरा किया जहां उसने मस्जिद का निर्माण भी किया (निर्माण पर यह सबसे बड़ी बहस है कि क्या यह मंदिर के ध्वस्त स्थल पर बनाया गया था या विध्वंस के बाद बनाया गया था) मस्जिद का निर्माण एक विशाल परिसर के साथ किया गया था जहाँ हिंदू और मुसलमान दोनों एक हीं छत के नीचे पूजा कर सकते थे. बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण पंजाब के शासक दौलत खान लोदी और मेवाड़ के शासक राणा सांगा ने दिया था. बाबर की मृत्यु के बाद उसे श्रद्धांजलि देने के लिए इस स्थान का नाम बाबरी-मस्जिद रखा गया था.

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पहली सांप्रदायिक हिंसा-

इस बावत 1853 में पहली बार अवध के नवाब वाजिद अली शाह के शासनकाल के दौरान सांप्रदायिक हिंसा की घटना दर्ज की गई थी, जब हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों ने कहा कि यहाँ हिंदू मंदिर के विध्वंस के बाद मस्जिदों का निर्माण किया गया. इसके बाद साइट पर कब्जे की बात को लेकर अनेकों सांप्रदायिक झड़पें हुईं. इसलिए, अंग्रेजों द्वारा 1859 में एक बाड़ का निर्माण किया गया जो पूजा स्थलों को अलग करता था, यानि आंतरिक दरबार मुसलमानों द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा और बाहरी स्थान पूजा के लिए हिंदुओं के द्वारा.
इसके बाद तो घटनाओं की श्रृखलायें हीं बनती चली गई. इन घटनाओं को हम समय के अनुसार ब्योरेवार ढ़ंग से नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं-
*1885 में फैजाबाद जिला न्यायालय ने राम चबूतरे पर छत्र बनाने की महंत रघुबीर दास की याचिका खारिज कर दी.
*1949 में हिंसक विवादों की दशा तब पैदा हुई जब हिंदू कार्यकर्ताओं द्वारा राम की मूर्ति को मंदिर के अंदर रखा गया और उन्होंने यह संदेश फैलाया कि मूर्तियाँ मस्जिद के अंदर 'चमत्कारिक रूप से' दिखाई दीं. मुस्लिम कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध के बाद दोनों पक्षों ने सिविल सूट दायर किया और अंततः सरकार द्वारा इस परिसर को एक विवादित क्षेत्र के रूप में घोषित कर इसके फाटकों को बंद कर दिया गया. जवाहरलाल नेहरू ने मूर्तियों की अवैध स्थापना पर कड़ा रुख अपनाया और जोर देकर कहा कि मूर्ति को हटा दिया जाना चाहिए, लेकिन स्थानीय अधिकारी के के के नायर (अपने हिंदू राष्ट्रवादी संबंधों के लिए जाने जाते हैं) ने यह दावा करते हुए कि इससे सांप्रदायिक दंगे होंगे आदेशों को पूरा करने से इनकार कर दिया. इसके बाद
*18 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने 'अस्थान जन्मभूमि' पर स्थापित मूर्तियों की पूजा के अधिकार के लिए अनुमति मांगने के लिए मुकदमा दायर किया. अदालत ने मूर्तियों को हटाने पर रोक लगा दी और पूजा की अनुमति दे दी. फिर

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*1959 में निर्मोही अखाड़ा ने उस स्थान के कब्जे के लिए एक नया दावेदार और मुकदमा फाइल किया, जिसमें उसने खुद को उस स्थान के संरक्षक के रूप में दावा किया जिस पर राम का जन्म हुआ था. इसके बाद
*18 दिसम्बर 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड (केंद्रीय) ने जबरन मूर्ति स्थापना और मस्जिद और आसपास की जमीन पर कब्जा करने की मांग के खिलाफ अदालत का रुख किया. पश्चात
*1986 में हरि शंकर दुबे की याचिका के आधार पर जिला अदालत ने हिंदू समुदाय के दर्शन के लिए गेट खोलने का निर्देश दिया. फैसले के विरोध में मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया. नतीजतन, गेट एक घंटे से भी कम समय के लिए खोला गया और फिर से बंद रहने लगा.
*1989 में विहिप के पूर्व उपाध्यक्ष देवकी नंदन अग्रवाल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में नाम और कब्जे के लिए मुकदमा दायर किया.
*23 अक्टूबर 1989 में बाबरी-मस्जिद विवाद से जुड़ा पूरा मामला हाईकोर्ट की स्पेशल बेंच की जांच के घेरे में आ गया.
*1989 में हीं विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने विवादित मस्जिद से सटी जमीन पर शिलान्यास कर दिया.
*1990 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यकर्ताओं ने मस्जिदों को ध्वस्त करने की कोशिश की  परिणामस्वरूप, आंशिक रूप से मस्जिदों को नुकसान पहुंचा. भारत के समकालीन प्रधान मंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत के माध्यम से विवाद को सुलझाने की कोशिश की लेकिन असफल रहे.
*6 दिसम्बर 1992 को विहिप, शिवसेना और भाजपा के समर्थन में हिंदू कार्यकर्ताओं के द्वारा विवादित मस्जिद को तोड़ा गया. जिस कारण देशव्यापी सांप्रदायिक दंगे हुए जिनमें 2,000 से अधिक लोगों की जान चली गई.
*16 दिसम्बर 1992 में भारतीय गृह केंद्रीय मंत्रालय के एक आदेश द्वारा सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एम एस लिब्रहान के तहत बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे के विनाश की जांच के लिए लिब्राहन आयोग (लिब्राहन अयोध्या आयोग जांच के लिए) की स्थापना की गई.
*जुलाई 1996 के दौरान, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सभी दीवानी मुकदमों को एक ही टेबल के नीचे क्लब कर दिया.
*2002 में उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को यह पता लगाने का आदेश दिया कि क्या मस्जिद के नीचे मंदिर के प्रमाण होंगे.
*अप्रैल 2002 में बाबरी-मस्जिद विवादित स्थल के असली ओनर का पता लगाने के लिए जज के नेतृत्व में हाईकोर्ट ने सुनवाई शुरू की.
*जनवरी 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने बाबरी-मस्जिद विवादित भूमि के नीचे मंदिर के साक्ष्य का पता लगाने के लिए खुदाई शुरू की और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. कि पत्थर के स्तंभों और स्तंभों के आधार पर मंदिर के प्रमाण हैं जो हिंदू, बौद्ध या जैन का प्रतिनिधित्व हो सकते हैं.
*जून 2009 में लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और रिपोर्ट में विध्वंस में उनकी भूमिका के लिए भाजपा के राजनेता को दोषी ठहराया गया.
*26 जुलाई 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया और सभी पक्षों को मैत्रीपूर्ण चर्चा के माध्यम से इस मुद्दे को हल करने का सुझाव दिया, लेकिन दुर्भाग्य से किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई.

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*17 सितंबर 2010 को आरसी त्रिपाठी ने फैसले की घोषणा को टालने के लिए उच्च न्यायालय में एक मुकदमा दायर किया जिसे उच्च न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया.
*21 सितंबर 2010 को आरसी त्रिपाठी ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने के लिए उच्चतम न्यायालय का रुख किया लेकिन अल्तमस कबीर और एके पटनायक की पीठ ने मामले की सुनवाई से इनकार कर दिया तो मामले को दूसरी पीठ को भेज दिया गया.
*सितंबर से दिसम्बर 2010 के दौरान, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय दिया कि विवादित भूमि को तीन भागों में विभाजित किया जाए. एक तिहाई हिस्सा राम लला (हिंदू महासभा की कम प्रतिनिधित्व) को जाता है, एक तिहाई इस्लामिक वक्फ बोर्ड को, और शेष तीसरा निर्मोही अखाड़े को.
*दिसम्बर 2010 के दौरान, अखिल भारतीय हिंदू महासभा और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी.
*2011 में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि के बंटवारे पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई और कहा कि यथास्थिति बनी रहेगी.
*2015 में विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी-मस्जिद की विवादित भूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिए राष्ट्रव्यापी पत्थर इकट्ठा करने की घोषणा की. महंत नृत्य गोपाल दास ने जोर देकर कहा कि मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने मंदिर निर्माण पर हरी झंडी दे दी है. अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों को आने नहीं देगी क्योंकि इससे सांप्रदायिक तनाव बढेगा.
*मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी-मस्जिद विध्वंस मामले के आधार पर कहा कि आडवाणी और अन्य नेताओं के खिलाफ आरोपों को हटाया नहीं जा सकता और मामले को फिर से शुरू किया
जाना चाहिए.

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*21 मार्च 2017 को भारत का सर्वोच्च न्यायालय कहता है कि बाबरी-मस्जिद विध्वंस मामला संवेदनशील है और इसे मुद्दों के एकीकरण के बिना हल नहीं किया जा सकता इसलिए, यह बाबरी
मस्जिद मामले के सभी स्टालधारकों से एक सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने की अपील करता है.
*19 अप्रैल 2017 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे राजनेताओं के खिलाफ साजिश का मामला बहाल किया. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद
कोर्ट की लखनऊ बेंच को भी दो साल के भीतर सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया. 2018 8 फरवरी, 2018: सुप्रीम कोर्ट ने दीवानी अपीलों पर सुनवाई शुरू की।
*27 सितंबर, 2018- सुप्रीम कोर्ट ने मामले को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को सौंपने से इनकार कर दिया.
*29 अक्टूबर, 2018- सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई जनवरी के पहले सप्ताह में तीन-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष तय की.
*24 दिसंबर 2018- सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में 4 जनवरी 2019 को सुनवाई तय की.

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2019 - होने वाली घटनाएं-


*4 जनवरी 2019- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मामले में सुनवाई की तारीख तय करने के लिए 10 जनवरी को आदेश पारित करेगा.
*8 जनवरी, 2019- सुप्रीम कोर्ट द्वारा पांच-न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया गया था और इसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और अन्य न्यायाधीशों- एस ए बोबडे, एन वी रमना, यू यू
ललित और डी वाई चंद्रचूड़ ने की थी. हालांकि, जस्टिस यू यू ललित ने खुद को बेंच से अलग कर लिया.
*25 जनवरी, 2019- सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस एस ए बोबडे, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस ए नज़ीर की पांच-न्यायाधीशों की पीठ का पुनर्गठन किया.
*29 जनवरी, 2019: केंद्र सरकार ने विवादित स्थल के आसपास के 67 एकड़ क्षेत्र को मूल मालिकों को वापस करने की अनुमति लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
*26 फरवरी, 2019- सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता का समर्थन किया.
*8 मार्च, 2019- सुप्रीम कोर्ट ने विवाद को मध्यस्थता पैनल के पास भेज दिया, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफएम आई कल्लिफुल्ला ने की.
*9 अप्रैल, 2019- निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में अधिग्रहीत जमीन को मूल मालिकों को वापस करने की केंद्र की याचिका का विरोध किया.
*9 मार्च, 2019- मध्यस्थता पैनल ने सर्वोच्च न्यायालय को अंतरिम रिपोर्ट सौंपी.
*10 मई, 2019: सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी रिपोर्ट को पूरा करने के लिए मध्यस्थता पैनल को 15 अगस्त, 2019 तक का समय दिया.
*11 जुलाई, 2019- सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल द्वारा रिपोर्ट पर प्रगति की मांग की.
*1 अगस्त 2019- मध्यस्थता पैनल ने एक सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी.
*2 अगस्त 2019- 6 अगस्त 2019 से प्रतिदिन सुनवाई होनी थी.
*4 अक्टूबर, 2019- सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया. इसने आगे कहा कि वह 17 नवंबर, 2019 तक विवादित भूमि पर फैसला
सुनाएगा.
*16 अक्टूबर 2019- सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई खत्म. बेंच ने अंतिम फैसला सुरक्षित रख लिया.
*9 नवंबर, 2019- सुप्रीम कोर्ट ने विवादित मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया और अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि राम लला को दे दी, जो केंद्र सरकार के रिसीवर के पास होगी. सुप्रीम कोर्ट
ने केंद्र और यूपी सरकार को मस्जिद बनाने के लिए एक प्रमुख स्थान पर मुसलमानों को 5 एकड़ जमीन आवंटित करने का भी निर्देश दिया.
*12 दिसंबर, 2019- सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित भूमि पर अपने फैसले की समीक्षा करने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया.

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2020: होने वाली घटनाएं-

*5 फरवरी, 2020- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की स्थापना को अपनी मंजूरी दी. यह संस्था स्थल पर राम मंदिर निर्माण की निगरानी करेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोक सभा में इसकी घोषणा की.
*24 फरवरी, 2020- उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अयोध्या के सोहावल तहसील के धन्नीपुर गांव में एक मस्जिद बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा आवंटित पांच एकड़ भूखंड को स्वीकार कर लिया.
*5 अगस्त 2020- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर की आधारशिला रखी.
 

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