मुग़लों के वंश में दो महान वंशों की आनुवंशिक गुणवत्ता मिली हुयी थी. बाबर, जिसने सर्वप्रथम सन् 1526 में भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की थी, अपने पिता की ओर से तैमूर का और माँ की ओर से चंगेज़ खां का वंशज था.
अपने पिता के बाद बाबर फ़रगाना (उज्बेकिस्तान) का शासक बना लेकिन जल्दी हीं वह राज्य उसके हाथों से निकल गया. राज च्यूत होने के बाद बाबर काबुल चला गया. वित्तीय कठिनाइयां, काबुल पर उज्बेकिस्तान के हमले की आशंका और राणा सांगा के भारत पर आक्रमण के निमंत्रण ने बाबर का ध्यान भारत की ओर आकर्षित किया. जिसके बाद 1526 की पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हरा कर बाबर ने भारत में दिल्ली सल्तनत का शासन ख़त्म किया और मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की.- यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं और विशेषज्ञ मार्गदर्शन की तलाश कर रहे हैं, तो आप हमारे जनरल अवेयरनेस ई बुक डाउनलोड कर सकते हैं FREE GK EBook- Download Now.
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मुग़ल साम्राज्य ने लगभग तीन शताब्दियों (1526-1540, 1555-1857) तक भारत पर राज किया. हालाँकि बीच में कुछ समय के लिए भारत में सूर वंश का शासन रहा. 1540 के बिलग्राम के युद्ध में शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को पराजित करके भारत में सूर साम्राज्य की स्थापना की. 1555 में हुमायूँ ने सरहिन्द की लड़ाई जीती और दुबारा राजगद्दी पर बैठे. 1556 में हुमायूँ की मृत्यु के बाद उसके बेटे अकबर को मात्र 14 वर्ष की उम्र में भारत की राजगद्दी मिली लेकिन उसके पहले बैरम खां के नेतृत्व में पानीपत की दूसरी लड़ाई लड़ी गयी जिसमें हेमचन्द्र विक्रमादित्य की पराजय के बाद भारत में वापस मुग़ल साम्राज्य की स्थापना हो गयी. 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया था. इस राजवंश के छः प्रमुख शासकों – बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और औरंगजेब को “ग्रेट मुग़ल” कहा जाता है.
अकबर की धार्मिक नीतियाँ
अकबर की धार्मिक नीतियाँ उसके माता-पिता और सामाजिक विरासत द्वारा ढाली गईं थीं और उन्हीं से प्रेरित थीं. अकबर को बचपन में जो भी शिक्षक और मार्गदर्शक मिले संयोग से सभी रुढ़िमुक्त धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे. अकबर के शिक्षक अब्दुल लतीफ एक उदार विचारों वाले व्यक्ति थे. अकबर ने उनसे सुलेह-ए-कुल का पाठ सीखा था जिसका अर्थ होता है सभी के साथ शांति. बैरम खान के व्यक्तित्व ने भी अकबर के दृष्टिकोण को काफी प्रभावित किया था.
- अकबर मध्यकालीन भारत के पहले ऐसे सम्राट थे जिन्होंने धार्मिक सहिष्णुता की नीति को धर्मनिरपेक्षता के शिखर तक पहुँचाया. हिंदुओं के प्रति उसकी सहिष्णु नीति का पहला चरण आध्यात्मिक जागृति थी. सभी धर्मों के बीच एक बुनियादी एकता होती है अकबर ने इस बात को समझा था.
- अपनी धर्मनिरपेक्ष नीति के अंतर्गत अकबर ने 1562 में अंबर की राजपूत राजकुमारी से शादी की और राजपूत योद्धाओं की स्वैच्छिक सेवाएं प्राप्त कीं.
- 1562 में अकबर ने घोषणा की कि किसी भी सूरत में मुगल सेनाओं द्वारा दुश्मन खेमे के महिलाओं और बच्चों के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए.
- 1563 में जब अकबर मथुरा में थे तब उन्हें पता चला कि, मुस्लिम शासकों की पुरानी प्रथा के अनुसार, उनकी सरकार ने भी हिंदू तीर्थयात्रियों पर कर लगाया हुआ है. और जो भी हिन्दू तीर्थयात्री यमुना में डुबकी लगाना चाहते थे, प्रशासन उनसे इसके लिए कर वसूलता था.
- बाद में अकबर ने अपने पूरे राज्य में तीर्थयात्रा कर को समाप्त कर दिया. 1564 में, अकबर ने जजिया को भी समाप्त कर दिया.
- अकबर द्वारा मजहर की घोषणा मध्यकाल के दौरान की गई अब तक की सबसे बड़ी घोषणा थी. इस घोषणा का मुख्य उद्देश्य राजनीति को धर्म से अलग करना और रूढ़िवादी इस्लामी कानून की तुलना में शाही फरमान को अधिक महत्व देना था.
- अकबर ने खुद को इमाम-ए-आदिल या इस्लामी कानून का मुख्य व्याख्याता कहा. इस तरह, अकबर ने दीवान-ए-कज़ा या न्यायिक सह धार्मिक विभाग पर एक प्रभावी नियंत्रण विकसित कर लिया. इस विभाग पर पहले उलेमा या मुस्लिम धर्मशास्त्रियों का प्रभुत्व था. उलेमा हमेशा मुस्लिम समुदाय के प्रति अधिक सहानुभूति रखते थे और इस्लाम द्वारा स्थापित नियमों के प्रति सख्त थे.
- 1582 में अकबर ने दीन-ए-इलाही नामक एक नए धर्म की स्थापना की. ऐसा करने के पीछे अकबर की भावना सभी भारतीयों - चाहे वो किसी भी जाति, पंथ, धार्मिक विश्वास और प्रथाओं से संबंध रखते हों, को एक समरूप समाज में जोड़ने की थी.
- अकबर के धम्म दीन-ए-इलाही का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना और समाज में शांति और सौहार्द विकसित करना था.
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औरंगजेब की धार्मिक नीतियाँ
औरंगजेब की धार्मिक नीति इस्लामी सिद्धांत पर आधारित थी. औरंगजेब सुन्नी संप्रदाय का सख्त अनुयायी था. इस हद तक का अनुयायी कि वह शिया संप्रदाय के सदस्यों को यातनाएं देता था. औरंगजेब ने राजपूतों, जाटों, सिखों और मराठों को भी विद्रोह करने के लिए मजबूर कर दिया. बीजापुर और गोलकुंडा राज्यों को नष्ट किया.- औरंगजेब का मानना था कि उसके पहले शासन करने वाले सभी मुगल शासकों ने एक बहुत बड़ी गलती की - उन्होंने भारत में इस्लाम की सर्वोच्चता स्थापित करने की कोशिश नहीं की.
- औरंगजेब ने अपने सम्पूर्ण जीवन काल के दौरान भारत में इस्लाम की सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए प्रयास किया क्योंकि उनका मानना था कि यह एक मुस्लिम राजा का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य यही है कि वो अपने सम्पूर्ण शासन क्षेत्र में इस्लाम का प्रसार करे.
- औरंगजेब इस्लाम को छोड़कर बाकी सभी अन्य धार्मिक मान्यताओं के प्रति असहिष्णु था. औरंगजेब ने अपने दरबार में होली, दिवाली जैसे सभी हिंदू त्योहारों को मनाना बंद कर दिया था.
- औरंगजेब के शासनकाल के दौरान वाराणसी के विश्वनाथ मंदिर से लेकर सोमनाथ मंदिर सहित उत्तर भारत के लगभग सभी प्रसिद्ध मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था. जजिया कर फिर से लगाया गया और अन्य करों को भी पुनर्जीवित किया गया था.
- औरंगजेब ने मुसलमानों के लिए कुछ कानून बनाये और उन्हें उन कानूनों का धार्मिक कर्तव्यों के रूप में पालन करने के लिए कहा. साथ हीं अधिकारियों के एक नए वर्ग की नियुक्ति भी की गयी जिन्हें इन कानूनों को लागू करने का कर्तव्य सौंपा गया. इन अधिकारियों को ईशनिंदा के दोषी पाए जाने वाले सभी लोगों को दंडित करने का अधिकार दिया गया था. इसीलिए औरंगजेब के शासनकाल में उदार शिया और सूफियों को भी दंडित किया जाता था.
- औरंगजेब द्वारा अपनाई गयी धार्मिक असहिष्णुता ने मराठों, सतनामी, सिखों और जाटों द्वारा कई विद्रोहों को प्रेरित किया. इन विद्रोहों ने साम्राज्य की शांति को नष्ट कर दिया, अर्थव्यवस्था को बाधित किया और सैन्य ताकत को कमजोर कर दिया. यह अंततः ना केवल औरंगजेब की विफलता का कारण बना बल्कि मुगल वंश के पतन का कारण भी बना.
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