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छल और विश्वासघात की लड़ाई
इतिहास गवाह है कि हिंदुस्तान ने अनगिनत लड़ाइयाँ लड़ी हैं और जीत हासिल किया है. पर युद्ध में जीतना आसान होता है जबकि विश्वासघात में जीतना जरा मुश्किल होता है. ऐसी हीं एक लड़ाई की आज हम बात करने वाले हैं. वह साल था 1962 का और युद्ध हुआ था भारत चीन के बीच. इस युद्ध को सिद्धांत की लड़ाई के बजाय छल और विश्वासघात की लड़ाई कहना ज्यादा उचित होगा. कई सालों तक चला यह युद्ध आखिरकार चीन द्वारा युद्धविराम की घोषणा के बाद समाप्त हुआ था. इस युद्ध ने जन धन का हीं विनाश नहीं किया बल्कि भारत और चीन की सदियों पुरानी मित्रता को भी विनष्ट कर डाला.हिंदी चीनी भाई भाई
आज से करीब 58 साल पहले की बात है चीन ने भारत पर योजनाबद्ध तरीके से हमला किया था. चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा लाँघ कर भारत में प्रवेश किया और अपने पुराने तथा विश्वसनीय मित्र भारत को युद्ध भूमि में ललकारा. तब तक भारत का चाइना से प्रेम का यह आलम था कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का एक नारा 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' हर हिन्दुस्तानी के सर चढ़ कर बोलता था. साल 1947 में भारत की आजादी के बाद से हीं चाइना और भारत एक दूसरे के जिगरी मित्र रहे यहाँ तक कि एक बार भारत ने जापान की गोष्ठी आमन्त्रण को केवल इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि उसमें चीन को नहीं बुलाया गया था. मगर साल 1959 में दलाई लामा के भारत में शरण लेने के बाद से हीं भारत पर चाइना की नज़र टेढ़ी हो गयी थी. जानकारों की मानी जाए तो यही बात भारत और चीन के बीच युद्ध की बड़ी वजह बनी.History of Galwan Valley : क्या है गलवान घाटी का इतिहास, देखें यहाँ
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योजनाबद्ध तरीके से किया गया हमला
तब बॉर्डर पर चीन की इस घटिया हरकत से पूरी दुनिया हैरान रह गई थी. मित्रता के लिए समर्पित भारत चीन द्वारा हमला किए जाने के बारे में सोच भी नहीं सकता था. भारत की इसी ईमानदारी का फायदा उठाते हुए चीन के नेता माओत्से तुंग ने तिब्बत रेजीमेंट के तत्कालीन पीएलए कमांडर झांग गुओहुआ को भारत पर हमला करने का आदेश दिया. इस युद्ध में भारत के साथ जो सबसे बुरी बात हुई वह ये कि वह मानसिक रूप से अपने प्रिय मित्र के साथ युद्ध के लिए तैयार नहीं था. जब युद्ध क्षेत्र में चीन के तीन रेजिमेंट्स तैनात होकर भारत को ललकारने लगे तब तक यह भारत का भरोसा हीं था कि उसने सैनिकों की सिर्फ दो टुकड़ियों को सामना करने भेजा. इधर चाइना के छल की तैयारी पूरी थी, चीनी सैनिकों ने भारत के टेलिफोन लाइन काट दिए ताकि सैनिक भारतीय मुख्यालय से संपर्क न कर सकें. पूरे एक महीने तक चले इस युद्ध में आलम यह था कि चीन के 80 हजार जवानों का मुकाबला करने के लिए भारत के सिर्फ 10-20 हजार सैनिक मौजूद थे. इस युद्ध की विनाश लीला 21 नवंबर 1962 को चीन के युद्ध विराम की घोषणा करने तक चलती रही थी.
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भारत की 14 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा
चाइना ने भारत की 14 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया था. चाइना के अतिक्रमण से क्रोधित होकर देश में तीव्र विरोध होने लगे. सरकार की आलोचना शुरू हुई तब तत्कालीन सेना प्रमुख पीएन थापर को चीनी सैनिकों को भारतीय इलाके से खदेड़ने का आदेश दिया गया. पर अति विश्वास या असावधानी जो भी कारण रहा हो भारतीय सेना हथियार और संसाधनों की कमी से जूझ रही थी. एक महीने तक चले इस लम्बे युद्ध में भारतीय वायु सेना को शामिल नहीं किया गया था. इस युद्ध को केवल भारतीय सशस्त्र बलों के द्वारा लड़ा गया था.सामान्य हिंदी ई-बुक - फ्री डाउनलोड करें |
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राष्ट्रपति कैनेडी देना चाहते थे साथ
कहते हैं कि तत्कालीन राष्ट्रपति कैनेडी ने तब भारत को सैन्य सहायता के रूप में $500 मिलियन देने की पेशकश की थी, लेकिन उनकी हत्या हो जाने के कारण यह योजना पूरी नहीं हो सकी थी.देखा जाए तो भारत-चीन के बीच 1962 में हुआ यह युद्ध एक सीमा विवाद था. पर असल में चीन के 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब दलाई लामा को भारत ने शरण दिया चीन की तरफ से सीमा पर हिंसक घटनाओं की श्रृंखला तभी से शुरू हो गयी थी. और फिर चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू कर दिए थे.