पाठ में स्वयं को भारतीय कहने वाले फ़ादर कामिल बुल्के के जीवन की उन विशेषताओं का वर्णन किया गया है, जो स्पष्ट करता है कि संन्यासी होते हुए भी वे पारंपरिक अर्थों में संन्यासी नहीं थे। वे जिससे एक बार रिश्ता बना लेते थे, उसे ज़िंदगी भर तोड़ते नहीं थे। जब तक भारत में रामकथा रहेगी, तब तक फ़ादर कामिल बुल्के को एक सच्चे भारतीय साधु की तरह याद किया जाता रहेगा क्योंकि उन्होंने हिंदी में अपना उल्लेखनीय शोध प्रबंध ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास' पूरा किया था। फ़ादर कामिल बुल्के ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने जन्म तो लिया बेल्ज़ियम (यूरोप) में, किंतु अपनी कर्मभूमि बनाया भारत को। उन्हें हमेशा भारतीय संस्कृति एवं हिंदी भाषा से अगाध प्रेम करने वाले साधु व्यक्ति यानी मानवीयता से परिपूर्ण व्यक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाएगा।
Students can view and download the chapter from the link given below.
Click here to get the complete chapter
NCERT Solutions for Chapter 13: मानवीय करुणा की दिव्य चमक
Also Check
Chapter 1: सूरदास के पद
Chapter 2: राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
Chapter 3: सवैया और कवित्त
Chapter 4: आत्मकथ्य
Chapter 5: उत्साह और अट नहीं रही है
Chapter 6: यह दंतुरित मुस्कान और फसल
Chapter 7: छाया मत छूना
Chapter 8: कन्यादान
Chapter 9: संगतकार
Chapter 10: नेताजी का चश्मा
Chapter 11: बालगोबिन भगत
Chapter 12: लखनवी अंदाज़
Chapter 14: एक कहानी यह भी
Chapter 15: स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन
Chapter 16: नौबतखाने में इबादत
Chapter 17: संस्कृति
Check out Frequently Asked Questions (FAQs) for Chapter 13: मानवीय करुणा की दिव्य चमक
फ़ादर कामिल बुल्के का देहांत कब हुआ और उन्हें कहाँ दफनाया गया? उनकी अंतिम यात्रा के समय उपस्थित गणमान्य विद्वानों की उपस्थिति किस बात का प्रमाण है?
फ़ादर कामिल बुल्के का देहान्त 18 अगस्त,1982 को हुआ था। दिल्ली में कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में उन्हें दफनाया गया था। उनकी अंतिम यात्रा में ढेर सारे सम्मानित और हिंदी जगत के प्रबुद्ध लोग उपस्थित थे। इनमें डॉ विजयेन्द्र स्नातक,डॉ सत्यप्रकाश और डॉ रघुवंश आदि की उपस्थिति उनके व्यक्तित्व की श्रेष्ठता और महत्वपूर्ण योगदान का प्रमाण है।
“फ़ादर को जहरबाद से नहीं मारना चाहिये था।” लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
फ़ादर की मृत्यु एक प्रकार के ज़हरीले फोड़े अर्थात जहरबाद (गैंग्रीन) से हुई थी। फादर के मन में सदैव दूसरों के लिए प्रेम व अपनत्व की भावना थी ।ऐसे सौम्य व स्नेही व्यक्ति की ऐसी दर्दनाक मृत्यु होना उनके साथ अन्याय है इसलिए लेखक ने कहा है कि “फादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था।”
हिंदी की दुर्दशा पर फ़ादर बुल्के के हृदय से एक चीख सुनाई देती है और आश्चर्य भी। कैसे?
फादर कामिल बुल्के का हिंदी के प्रति चिंतित होना स्वभाविक था क्योंकि हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा का गौरव पूर्ण स्थान प्राप्त नहीं हो सका था। वे जहां कहीं भी वक्तव्य देते अपने इस चिंता को अवश्य प्रकट करते थे। वे इस बात को उठाते हुए अपनी वेदना प्रकट करते थे। वे हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए उचित तर्क भी देते थे। उन्हें आश्चर्य भी होता था की हिंदी को अपने ही देश में उचित स्थान नहीं मिल पा रहा था, स्वयं हिंदी भाषियों द्वारा हिंदी के साथ की जाने वाली उपेक्षा उनका दुख बढ़ा देती थी। हिंदी वालों द्वारा हिंदी का अनादर और उपेक्षा किए जाने पर उनके मन में चीख सुनाई देती थी जिसको हर मंच पर सुना जा सकता था।
मनुष्य अन्य बहुत-सी बातें भूल जाता है, किंतु दूर रह कर भी माँ के स्नेह को नहीं भुला पाता है। संन्यासी फ़ादर बुल्के भी अपनी माँ को नहीं भूल पाते हैं। उनकी भावनाओं को व्यक्त कीजिए।
बेल्जियम में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पहुंचकर उन्होंने सन्यासी होने का मन बना लिया और दीक्षा लेकर भारत आ गए। लेकिन अपनी जन्मभूमि और मां को बहुत याद करते थे। लेखक बताते हैं कि वे अक्सर अपनी मां की स्मृति में डूब जाते थे। उन्हें अपनी मां की बहुत याद आती थी। मां की चिट्टियां उनके पास आती, जिसे वे अपने अभिन्न मित्र डॉक्टर रघुवंश को दिखाते थे। पिता और भाइयों के लिए उनके मन में लगाव नहीं था। इस बात से हमें पता चलता है कि फादर बुल्के अपनी मां से अधिक स्नेह करते थे | दूर रहकर भी वे अपनी मां को भुला नहीं पाते।
फादर बुल्के भारतीयता में पूरी तरह रच-बस गए। ऐसा उनके जीवन में कैसे सम्भव हुआ होगा? अपने विचार लिखिए।
फादर बुल्के निश्चित रूप से प्रबुद्ध व्यक्ति थे | भारत आकर यहाँ की संस्कृति को जानने की उनकी उत्कंठा रही होगी इसलिए उन्होंने हिंदी और संस्कृत की शिक्षा ग्रहण साहित्य का अध्ययन किया | यहाँ स्थान-स्थान पर बिखरी हुई भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर वे उसी राह पर चल पड़े | भगवान राम के चरित्र से प्रभावित होकर उन्होंने उसी विषय पर शोध किया | अतः स्पष्ट है कि फादर बुल्के भारतीयता में पूरी तरह रच-बस गए।