हिंदी भाषा के जाने-माने कवि और साहित्यकार श्री जयशंकर प्रसाद जी द्वारा लिखी कविता आत्मकथा दिल को भीतर तक छू लेती है। इस कविता में उन्होंने बताया है कि कैसे लोग उनसे उनकी आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं, लेकिन अभी वो अपनी कहानी लिखना और लोगों को सुनाना नहीं चाहते हैं। जयशंकर प्रसाद जी के मित्रों ने उनसे आत्मकथा लिखने का निवेदन किया, जबकि जयशंकर जी अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहते थे। इसीलिए उनके मित्रों के निवेदन का मान रखते हुए, प्रसाद जी ने इस काव्य की रचना की। इस काव्य में उन्होंने जीवन के प्रति अपने अनुभव का वर्णन किया है।
उनके अनुसार यह संसार नश्वर है, क्योंकि प्रत्येक जीवन एक न एक दिन मुरझाई हुई पत्ती-सा टूट कर गिर जाता है। उन्होंने इस काव्य में जीवन के यथार्थ एवं अभाव को दिखाया है कि किस प्रकार हर आदमी कहीं न कहीं किसी चोट के कारण दुखी है। फिर चाहे वो चोट प्रेमिका का न मिलना हो या फिर मित्रों के द्वारा धोखा खाना हो।
उनके अनुसार उन्होंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया है, जिससे लोग उनकी आत्मकथा सुनकर वाह-वाही करेंगे। उन्हें तो लगता है कि अगर उन्होंने अपने जीवन का सत्य सबको बताया, तो लोग उनका उपहास उड़ाएंगे और उनके मित्र खुद को दोषी समझेंगे। कवि के अनुसार उनका जीवन सरलता एवं दुर्बलता से भरा हुआ है और उन्होंने जीवन में कोई महान कार्य नहीं किया। उनके अनुसार उनकी जीवन-रूपी गगरी खाली ही रह गई है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रस्तुत पंक्तियों में जहां एक ओर कवि की सादगी का पता चलता है, वही दूसरी ओर उनकी महानता भी प्रकट होती है।
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Check out Frequently Asked Questions (FAQs) for Chapter 4: आत्मकथ्य
कवि ने अब तक दुखदायी जीवन जीया है।
मुरझाकर गिर रही पत्तियाँ निराशाओं का प्रतीक हैं।
कवि अपने सरल स्वभाव को दोष नहीं देना चाहते हैं।
कवि अपनी आत्मकथा लिखने के बजाय दूसरों की आत्मकथा सुनना चाहता है।
कविता में थका हुआ पथिक स्वयं कवि है।