एक कहानी यह भी ’ नामक पाठ लेखिका द्वारा सिलसिलेवार लिखी गई आत्मकथा का हिस्सा नहीं है , बल्कि उन्होंने इसमें ऐसे व्यक्तियों और घटनाओं के विषय में लिखा है , जिनका संबंध उनके लेखकीय जीवन से रहा है।
लेखिका ने अपने किशोर जीवन से जुड़ी घटनाओं और विशेष रूप से अपने पिताजी तथा कॉलेज की प्राध्यापिका शीला अग्रवाल के विषय में बताते हुए स्वतंत्रता आंदोलन का भी वर्णन किया है। लेखिका ने अपने परिवार और कॉलेज की कुछ घटनाओं का वर्णन करते हुए अपने पिता के स्वभाव में क्षण – क्षण में आने वाले परिवर्तनों को भी बताया है । लेखिका द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में की गई भागीदारी में उनका उत्साह , ओज , संगठन क्षमता और विरोध करने का स्वरूप प्रशंसनीय है।
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मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व में पिताजी की अनेक अच्छाइयों और बुराइयों ने प्रवेश पा लिया था। पिताजी द्वारा बड़ी और गोरी बहन सुशीला की प्रशंसा करने के कारण उनके भीतर गहराई में हीन ग्रंथि ने जन्म ले लिया था | इस हीन भावना और कुंठा ने उनके आत्मविश्वास को हिला कर रख दिया था | पिताजी ने ही उनके मन में देशप्रेम की भावना जगाई थी |
कॉलेज में लेखिका ने कॉलेज प्रबंधन समिति के विरुद्ध जाकर जो भी कार्य किए वे देश की स्वतंत्रता के लिए थे | उनके पिता भी यही चाहते थे कि लेखिका देश की आज़ादी के लिए कार्य करें इसलिए कॉलेज से शिकायती पत्र आने पर भी उनके पिता उनसे नाराज़ नहीं हुए |
पिताजी से लेखिका की वैचारिक टकराहट तो उनके होश सँभालने से ही शुरू हो गई थी | उनके पिताजी उन्हें देश और समाज के प्रति जागरूक तो बनाना चाहते थे पर घर की चारदीवारी में सीमित रहकर | लेखिका के लिए किसी की दी हुई आज़ादी के दायरे में चलना कठिन था | वे नहीं चाहते थे कि लेखिका लड़कों के साथ सड़कों पर हड़तालें करवाए और नारे लगाए | अतः लेखिका ने अपने पिता के विरुद्ध जाकर ये सब किया | वे नहीं चाहती थीं कि उनकी स्वतंत्रता को पिता के द्वारा इतना संकुचित कर दिया जाए कि उनका दम घुटने लगे |राजेन्द्र यादव से अपनी मर्ज़ी से विवाह करना भी पिता के साथ वैचारिक टकराहट का ही परिणाम था |
पिता के शक्की स्वभाव का लेखिका पर ये प्रभाव पड़ा कि वे भी शक्की स्वभाव की हो गईं थी इस कारण अपनी उपलब्धियों पर वे विश्वास ही नहीं कर पाती थीं,उन्हें लगता था कि उपलब्धि मिलना तो तुक्का लगना है | इस स्वभाव के कारण उनका विश्वास टूट कर उनके दुःख को बढ़ाता रहता था |
पड़ोस कल्चर मनुष्य के जीवन में अहम् भूमिका निभाता है | सहानुभूति और सहयोग की भावना का उदय पड़ोस से ही होता है | ‘पड़ोस कल्चर’ छूट जाने से आज की पीढ़ी को ये हानि हुई है कि वह संस्कारहीन होती जा रही है | इसके साथ ही आपसी संबंधों में भी आत्मीयता का अभाव हो गया है |