नौबतखाने में इबादत प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ पर रोचक शैली में लिखा गया व्यक्ति – चित्र है। यतींद्र मिश्र ने बिस्मिल्ला खाँ के परिचय के साथ – साथ उनकी रुचियों , उनके अंतर्मन की बुनावट , संगीत साधना और लगन को संवेदनशील भाषा में व्यक्त किया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि संगीत एक आराधना है। इसका एक विधि – विधान है। संगीत एक शास्त्र है , केवल इससे परिचय ही पर्याप्त नहीं है , बल्कि इसे पूर्ण रूप से पाने के लिए उसका अभ्यास , गुरु – शिष्य परंपरा , पूर्ण तन्मयता , धैर्य और मंथन भी ज़रूरी है।
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शिष्या ने बिस्मिल्ला खाँ को फटी और पैबंद लगी हुई लुंगी पहने हुए देखकर डरते-डरते कहा कि आपकी इतनी प्रतिष्ठा है | अब तो आपको भारत रत्न भी मिल चुका है | आप फटी लुंगी न पहने | अच्छा नहीं लगता, जब भी कोई आता है आप इसी फटी लुंगी में उससे मिलते हैं। यह आप क्या करते हैं। शिष्या के ऐसा कहने पर उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ ने उसे समझाते हुए कहा की ठीक है आगे से नहीं पहनेंगे, किन्तु तुम लोगों की तरह बनाव सिंगार में लगे रहे तो उमर ही बीत जाती और हो चुकी शहनाई, तब क्या खाक रियाज़ हो पाता | लुंगियां तो सिल सकती है पर खुदा फटा सुर न बख्शे क्योंकि सुर यदि फट गया तो फिर सही नहीं हो सकता | यही दुआ वे खुदा से मांगते थे |
मुहर्रम के गमजदा माहौल से अलग कभी सुकून के क्षणों में बिस्मिल्ला खां अपनी जवानी के दिनों को याद करते हैं। वे अपने अब्बाजान और उस्ताद को कम, पक्का महाल की कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी वाली दुकान को ज्यादा याद करते हैं क्योंकि कचौड़ी टालते समय खौलते घी में भी उन्हें संगीत का आरोह-अवरोह सुनाई देता था | उसकी छन से उठने वाली आवाज़ भी उन्हें संगीत से युक्त कचौड़ी लगती थी |
शहनाई एक ऐसा वाद्य जिसका प्रयोग मांगलिक-विधि-विधानों के अवसर पर ही होता है | इसी शहनाई बजने की परंपरा में बिस्मिल्ला खाँ अपने सुर के कारण अद्वितीय स्थान रखते हैं। वे संगीत के नायक रहे हैं इसलिए उन्हें शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक कहा गया है।
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व में ऐसी अनेक विशेषताएँ हैं जिनसे हम प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते | वे इस प्रकार हैं –
- धार्मिक उदारता – बिस्मिल्ला खां अपने धर्म के प्रति पूर्ण सजग थे | वे पाँचों वक्त की नमाज़ अदा तो अदा करते ही थे साथ ही काशी विश्वनाथ, बालाजी और गंगा मैया के प्रति भी अपार श्रद्धा और भक्ति रखते थे |
- बनावटीपन से दूर – भारतरत्न जैसे सर्वोच्च पुरस्कार के मिलने के बाद भी उनके व्यवहार में किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं आया | उनका जीवन हमें सिखाता है कि व्यक्ति को कभी अपनी कला परे अहंकार नहीं करना चाहिए तथा कभी यह नहीं समझना चाहिए कि उसकी कला-साधना का अंत हो गया। उनके जीवन से हमें शिक्षा मिलती है कि हमें सांप्रदायिकता से दूर रहना चाहिए तथा बड़ी से बड़ी सफलता पाकर भी अभिमान नहीं करना चाहिए।
डुमराँव गाँव की इतिहास में कोई विशेष पहचान नहीं रही है पर फिर भी वह एक विशेष स्थान के रूप में प्रसिद्द है | भारतरत्न पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्द शहनाई वादक बिस्मिल्ला खां का जन्म इसी स्थान पर हुआ था | शहनाई के लिए नरकट की आवश्यकता पड़ती है और यह नरकट इस गाँव में सोन नदी के किनारे विशेष रूप से पाया जाता है। इस तरह शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक हो गए।