रेखाचित्र शैली में रचित इस पाठ के अंतर्गत लेखक ने एक ऐसे पात्र का चित्रण किया है, जो कबीर के आदेशों पर चलते हुए अपने जीवन का निर्वाह करता है। ग्रामीण परिवेश को चित्रित करने के साथ – साथ इस पाठ में ग्रामीण संस्कृति को भी प्रस्तुत किया गया है। बालगोबिन भगत के बाह्य व्यक्तित्व से यह भी बताने का प्रयास किया गया है कि संन्यासी जीवन का आधार बाह्य व्यक्तित्व ही नहीं , अपितु मानवीय सरोकार होता है। बालगोबिन भगत के माध्यम से लेखक ने सामाजिक बुराइयों एवं रूढ़िवादी सोच पर प्रहार करते हुए मानवीयता की भावना को प्रतिपादित करने का प्रयास किया है।
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Check out Frequently Asked Questions (FAQs) for Chapter 11: बालगोबिन भगत
लड़के के देहांत के बाद जैसे ही श्राद्ध की अवधि समाप्त हुई वैसे ही बालगोबिन भगत ने पतोहू के भाई को बुला भेजा और उसे यह आदेश दिया गया कि वह पतोहू का पुनर्विवाह करवा दे | उन्होंने अपनी इसी इच्छा के साथ पतोहू को उसके भाई के साथ उसके मायके भेज दिया | यह व्यवहार उनकी रुढ़िवादी प्रगतिशील विचारधारा का परिचायक होने के साथ-साथ विधवा विवाह के समर्थक होने पर भी बल देता है |
भादों की अँधेरी रात्रि में जब बालगोबिन भगत गाते हुए अपने संगीत में तल्लीन हो जाते थे तब बिजली की चमक और बादलों की गर्जन में भी उनका स्वर सोते हुए लोगों के कानों में पहुँच कर उन्हें जगा देता था | खंजड़ी की आवाज़ के साथ दार्शनिक विचारों से ओतप्रोत उनके गीत सबके मन को मोह लेते थे और व्यक्ति अनजाने ही उनकी ओर खींचा चला आता था |
अपने इकलौते बेटे के देहांत के बाद श्राद्ध की अवधि पूरी होते ही अपनी पतोहू को उसके भाई के साथ भेजने का अटल निर्णय किया क्योंकि उनका विचार था कि अभी उसकी उम्र संसार देखने एवं उस का आनंद लेने की है यहां रह कर विधवा का जीवन जीते हुए उनकी सेवा करने की नहीं है। बालगोबिन भगत जी प्रगतिशील विचारों के व्यक्ति थे। उन्होंने यह निर्णय अपने पतोहू की जीवन की भलाई के लिए किया। भगत जी जानते थे कि कि उनकी पतोहू सुभग और सुशील स्त्री हे। उनकी सेवा और देखभाल बड़े ही मन से करेगी परंतु उसकी सेवा उनके निर्णय में बाधा उत्पन्न न कर दे इसीलिए श्राद्ध की अवधि के तुरंत बाद ही पतोहू के भाई को बुला कर साथ भेजने का प्रबंध किया और उसे दूसरी शादी कर लेने का आदेश दिया।
हर वर्ष गंगा स्नान जाते समय भगत के मन में निम्नलिखित विचार होते –
- भिन्न विचारधारा को अपने अन्दर धारण करना |
- तीस कोस तक पैदल चलना |
- भिक्षा नहीं मांगना |
- पांच दिन तक केवल पानी ही पीकर रहना |
- संत-समागम को ही प्रमुखता देना |
गर्मी की उमस भगत जी के स्वरों को निढाल नहीं कर पाती थी, बल्कि उनके संगीत से वातावरण शीतल हो जाता था। अपने घर के आंगन में आसन जमा बैठते। गांव के कुछ संगीत प्रेमी भी उनका साथ देते। खंजड़ी और करतालों की संख्या बढ़ जाती। एक पद गोविंद जी कहते, पीछे उनकी मंडली उसे दूसरी बार तीसरी बार बोलती जाती। एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से धीरे धीरे स्वर ऊंचा होने लगता। उस ताल- स्वर् चढ़ाव के साथ श्रोताओं के मन भी ऊपर उठने लगते। धीरे धीरे मन – तन पर हावी हो जाता अर्थात लोगों के मन के साथ साथ उनका शरीर भी झूमने लगता। एक क्षण ऐसा भी आता जब भगत जी नाच रहे होते तथा सभी उपस्थित लोगों के तन मन भी झूम रहे होते । सारा आंगन नृत्य और संगीत से भरपूर हो जाता तथा गर्मी की उमस भी शीतल प्रतीत होने लगती।