संगतकार कविता में कवि ने उन लोगों की चर्चा की है, जो मेहनत करने के बाद भी कभी प्रसिद्धि का स्वाद नहीं चखते। फिर भी वे निरंतर कार्य करते चले जाते हैं। उन्हें कभी उनके काम के लिए तारीफ़ सुनने को नहीं मिलती, बल्कि उनके काम का श्रेय किसी अन्य को मिलता है।
वे हमेशा अंधकार में जीते हैं, फिर भी वे बिना किसी स्वार्थ के निरंतर अपना काम करते चले जाते हैं। जिस तरह किसी गायक के साथ गाने वाले संगतकार होते हैं। सभी लोग गायक को जानते हैं, उसी की तारीफ़ करते हैं, परन्तु कोई यह नहीं जानता कि उसके साथ कितने संगतकार हैं। जो बिना किसी स्वार्थ के उसकी आवाज को दुर्बल नहीं होने देते।
जब-जब गायक की आवाज लड़खड़ाने लगती है, तब-तब संगतकार अपनी आवाज से गायक की आवाज को बाँध लेते हैं और उसे बिखरने नहीं देते। कभी-कभी तो उन्हें जान-बूझ ख़राब गाना पड़ता है कि कहीं उनकी आवाज़ गायक से अच्छी न हो जाए। वह ऐसा सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि मुख्य गायक की प्रसिद्धि में कोई कमी ना आए। जबकि उसे कोई खुद नहीं पहचानता। न ही उसे मान सम्मान मिलता है फिर भी वह निरंतर बिना किसी स्वार्थ के अपना काम करता रहता है।
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Check out Frequently Asked Questions (FAQs) for Chapter 9: संगतकार
संगतकार कविता में नौसिखिया से अभिप्राय मुख्य गायक के बचपन के दिनों से है | जब उसने गायन सीखना शुरू किया था। जब मुख्य गायक गाने की स्थायी का गान करते हुए संगीत में स्वर का विस्तार करते हुए कठिन तान में खो जाता है। वह संगीत के साथ स्वरों को पार कर अनहद की खोज में भटक जाता है, उस समय साहयक गायक ही गीत का चरण संभाले रखता है। वह साहयक ठीक मुख्य गायक के साथ ऐसे गायन करता है जैसे यात्री के पीछे छूटे हुए सामान को समेट रहा है। सहायक गायन की भूमिका ऐसी होती है मानो मुख्य गायक को उसके आरंभिक दिनों की याद दिला रहा है यानी जब उसने गायन सीखना शुरू किया था उन दिनों की याद दिलाता है।
संगतकार की आवाज को कमजोर काँपती आवाज कहा गया है क्योंकि जब मुख्य गायक गीत गाता है तो उसके साथ चट्टान के समान कठोर भारी ध्वनि के साथ काँपती हुई आवाज सहायक गायक की होती है। और ऐसा लगता है जैसे वह मुख्य गायक का छोटा भाई हो जो हर कार्यक्षेत्र में बड़े भाई का साथ देता है वैसे ही सहायक गायक मुख्य गायक के स्वर का साथ देकर उसके गायन की कमियों को ढक देता है। वह एक शिष्य की तरह आज्ञाकारी होता है। जब मुख्य गायक को सहायक गायक की आवश्यकता पड़ती है तो संगतकार अपना कर्त्तव्य निभाता है। इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे मुख्य गायक की ऊंँची आवाज पर उसका साथ देने के लिए दूर से पैदल चलकर उसका कोई रिश्तेदार आया है। वह पुराने समय से मुख्य गायक की आवाज के साथ अपनी कोमल आवाज से उसका साथ देता आ रहा है।
जब मुख्य गायक गाते हुए सुरों की मोहक दुनिया में खो जाता है और उसी में रम जाता है, तब संगतकार ही गीत की मुख्य पंक्ति या टेक के मूल स्वर को गाता रहता है। स्वर को बिखरने से बचाता रहता है तथा लय को कम-अधिक नहीं होने देता। वह मुख्य गायक को पुनः वास्तविक स्थिति में लेकर आता है और उनके गीत के बोल को बनाए रखता है।
संगतकार’ त्याग की मूर्ति है क्योंकि उसका संपूर्ण-जीवन मुख्य गायक के लिए अर्पित हो जाता है वह सर्वथा सक्षम होते हुए भी अपनी सामर्थ्य मुख्य गायक की सफलता के लिए अर्पित कर देता है। वह नहीं चाहता कि मुख्य गायक से आगे निकल जाए। मुख्य गायक संगतकार के प्रति प्रायः सम्माननीय भाव रखता है।संगतकार मुख्य गायक की असफलता को सफलता में बदल देता है, और मुख्य गायक के स्वर को ऊँचा उठाने का हर समय प्रयास करता है। संगतकार अपने गुणों सामर्थ्य और अपनी पहचान को छुपाकर मुख्य गायक का ही साथ देता है जिससे मुख्य गायक एक नई ऊंचाइयों पर पहुंच जाता है और उसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाला एकमात्र संगतकार ही होता है।इसलिए संगतकार त्याग की प्रतिमूर्ति बना रहता है।
संगतकार मुख्य गायक की गरजदार आवाज़ में अपनी गूँज मिलाता है। सदा मुख्य गायक के सहायक के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है | वह मुख्य गायक के बुझते स्वर को सँभाले रहता है। ऊँचा गाने की प्रतिभा होने पर भी वह मुख्य गायक के स्वर से अपनी स्वर नीचा रखकर उसका सम्मान करता है जो संगतकार की मनुष्यता है।