देशभक्ति का संदेश देने वाला यह पाठ स्पष्ट करता है कि देशभक्ति केवल किसी विशेष भू – भाग से प्रेम करना नहीं , बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक , प्रकृति , जीव – जंतु , पशु – पक्षी , पर्वत , पहाड़ , झरने आदि सभी से प्रेम करना एवं उनकी रक्षा करना है। लेखक ने चश्मे बेचने वाले कैप्टन के माध्यम से एक ऐसे साधारण व्यक्ति के कार्य का वर्णन किया है , जो अभावग्रस्त ज़िंदगी व्यतीत करते हुए भी देशभक्ति की भावना रखता है , परंतु हमारी कौम ऐसे व्यक्तियों को सम्मान देने के बजाय उन पर हँसती है। कैप्टन के चरित्र द्वारा लेखक ने उन असंख्य देशभक्तों को स्मरण करने का प्रयास किया है , जिन्होंने देशहित के लिए कार्य किया और देशभक्तों को सम्मान दिलाने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
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Check out Frequently Asked Questions (FAQs) for Chapter 10: नेताजी का चश्मा
हालदार साहब के मन में देशभक्तों के लिए बहुत सम्मान था। वे कस्बे में लगी नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने वाले कैप्टन नाम के साधारण व्यक्ति की देशभक्ति की भावना के प्रति श्रद्धाभाव रखते थे | वे देशभक्तों का मजाक उड़ाने वालों की आलोचना से दु:खी होते थे | देशभक्तों के प्रति सम्मान की भावना होने के कारण ही वह नेताजी की मूर्ति को देखकर अटेंशन की मुद्रा में खड़े हो जाते थे | इससे पता चलता है कि हालदार साहब एक भावुक देशप्रेमी इन्सान है |
शीला अग्रवाल जैसी प्राध्यापिका किसी भी विद्यार्थी के जीवन को इस प्रकार सँवार सकती हैं-
- विद्यार्थी का उचित मार्गदर्शन करके |
- उसकी सोच-समझ का दायरा बढ़ाकर |
- उसकी रुचियों का विकास करने का अवसर देना |
- स्वयं को उनके समक्ष आदर्श रूप में प्रस्तुत करके |
नेताजी की आँखों पर काँच की असली चश्मा लगा था। प्रतिमा पर पत्थर का चश्मा न लगा होने के संभावित कारण निम्नलिखित होंगे-
- नगरपालिका को देश के कुशल कारीगरों की जानकारी का अभाव होना |
- अच्छी मूर्ति की लागतअनुमानित बजट से ज्यादा होना |
- शासनावधि का समाप्त होना |
- स्थानीय स्कूल मास्टर को ही मूर्ति बनाने का काम सौपना और एक महीने में ही मूर्ति बनाने का विश्वास दिलाना |
- जल्दबाज़ी में मास्टर द्वारा चश्मा न बनाने की भूल करना |
मूर्ति को देख कर ऐसा लगता था कि नगरपालिका को देश के अच्छे मूर्ति कारों की जानकारी नहीं होगी और अच्छी मूर्ति बजट से ज्यादा की होने के कारण काफी समय प्रशासनिक पत्राचार में लग गया,साथ ही प्रशासनिक अधिकारी के शासन अवधि समाप्त होने में बहुत कम समय शेष था इसीलिए नजदीकी हाई स्कूल के ड्रॉइंग मास्टर को मूर्ति बनाने का काम सौंपा गया। प्रशासनिक अधिकारियों की हड़बड़ाहट का अंदेशा मूर्ति देखकर लगाया जा सकता है।
हालदार साहब को नेताजी की मूर्ति में चश्मा न होने की कमी खटकती थी | हालाँकि इस कमी को कैप्टन द्वारा असली फ्रेम लगाकर पूरा किया जाता था पर चूँकि मूर्ति संगमरमर की थी तो चश्मा भी संगमरमर का होना चाहिए था |