सूरदास हिंदी साहित्य में भक्ति-काल की सगुण भक्ति-शाखा के महान कवि हैं। इनके पद जन-जन के बीच बेहद प्रसिद्ध हैं और काफी सराहे जाते हैं। अपने पदों में सूरदास जी ने मुख्य रूप से श्री कृष्ण भगवान की लीलाओं का गुणगान किया है। इस पाठ में सूरदास जी के उस पद का वर्णन है, जिसमें उद्धव जी श्रीकृष्ण के वियोग में तड़प रही गोपियों के पास योग का संदेश लेकर जाते हैं। इस पर गोपियाँ उद्धव जी से किस प्रकार तर्क-वितर्क करती हैं। इस पाठ में जो चार पद हैं, वे सूरदास जी द्वारा रचित सूरसागर के भ्रमरगीत से लिए गए हैं। प्रस्तुत पदों में सूरदास जी ने गोपियों एवं उद्धव के बीच हुए वार्तालाप का वर्णन किया है। जब श्री कृष्ण मथुरा वापस नहीं आते और उद्धव के द्वारा मथुरा यह संदेश भेजा देते हैं कि वह वापस नहीं आ पाएंगे, तो उद्धव अपनी राजनीतिक चतुराई से गोपियों को समझाने का प्रयास करते हैं। लेकिन उनके सारे प्रयास विफल हो जाते हैं क्योंकि गोपिया ज्ञान-मार्ग के बजाय प्रेम-मार्ग में विश्वास करती हैं और अपनी चतुराई के कारण उद्धव को गोपियों के ताने सुनने पड़ते हैं एवं उनके व्यंग का शिकार होना पड़ता है।
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Check out Frequently Asked Questions (FAQs) for Chapter 1: सूरदास के पद
कवि प्रकट करना चाहते हैं कि तेल की गागर जल में रहकर भी उससे निर्लिप्त रहती है, ऊस पर जल-बूँदों का कोई प्रभाव नहीं होता। उसी प्रकार कृष्ण का सामीप्य पाकर भी उद्धव प्रेम के आकर्षण तथा वियोग की पीड़ा को नहीं समझ पाए।
गोपियों के अनुसार योग-साधना एक कड़वी ककड़ी के समान है योग साधना को वे एक ऐसी व्याधि के समान माना है जिसे पहले कभी न देखा, न सुना और न भोगा है। वे उसे निरर्थक एवं अरुचिकर मानती हैं। कृष्ण प्रेम को छोड़कर वह किसी अन्य मार्ग को अपनाना ही नहीं चाहते वह जीते मरते सिर्फ कृष्ण प्रेम में ही जीना और मरना चाहती हैं।
क्योंकि उध्दव अपने आप को निर्गुण भक्ति का सबसे बड़ा भक्त मानता था इसलिए कृष्ण जी ने सोचा कि इसे गोपियों के पास भेजते हैं और देखते हैं कि यह उन्हें निर्गुण भक्ति का संदेश दे पाते हैं या नहीं क्योंकि गोपियाँ रात-दिन सोते जागते सिर्फ उन को ही याद करती रहती है और उनके वापस आने की अवधि को आधार बना कर विरह रूपी अग्नि से अपने शरीर को जला रही है। उस रास्ते की ओर देखती रहती हैं जिधर से कृष्ण जी को वापस आना था इसलिए गोपियों की विरहग्नि को शांत करने और उनके मन को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने उद्धव को योग का संदेश लेकर भेजा ताकि उनके व्याकुल मन को शांति मिल सके।
उद्धव से गोपिया कहती है कि राजा का धर्म वह होता है जो सदैव अपनी प्रजा का हित चिंतन करे, उन्हें कभी न सताये उनके हित में कार्य करें किन्तु कृष्ण जी ने राजधर्म का पालन नहीं किया वे मथुरा जाकर हमको भूल गए और आपको हमें योग की शिक्षा देने के लिए गोकुल में भेजा है तो यह कहां का राजधर्म है।
सूरदास के पदों में श्रृंगार और वात्सल्य रस की प्रधानता है। परन्तु इन पदों में गोपियों का विरह का वर्णन है इसलिए इनमें वियोग श्रृंगार रस की प्रधानता है। सूरदास के काव्य में गेयता का गुण विद्यमान है। सूरदास को श्रृंगार और वात्सल्य का सम्राट कहा जाता है । इनमें कृष्ण, उद्धव, गोपियाँ तथा माता यशोदा आदि प्रमुख पात्र हैं।