कवि ऋतुराज द्वारा लिखी इस कविता में उन्होंने एक माँ और बेटी के वार्तालाप को दिखाया है। उन्होंने बताया है कि माँ किस तरह से अपनी नन्ही बेटी को बताती है कि उसे शादी के बाद कैसे जीवन जीना है और किन बातों का ध्यान रखना है। जब एक माँ अपनी बेटी को शादी के बाद विदा करती है, तो उसे ऐसा लगता है, मानो उसके जीवन की सारी जमा पूँजी उससे दूर चली जा रही है फिर उनका पुत्री-मोह उन्हें इस बात से भयभीत करता है कि उनकी बेटी नए घर में जा रही है, कहीं उसे कुछ परेशानी ना हो, या उसे कोई अत्याचार न सहना पड़े। इन सब के कारण माँ चिंतित होकर अपनी फूल-सी बेटी को भले-बुरे का पाठ पढ़ाने लग जाती है, जिसे जीवन में आने वाले दुखों का कोई बोध ही नहीं हैं, उसने सिर्फ अभी कुछ खुशियां ही देखी हैं और उन्हीं के सपने सजाए हैं अर्थात जब तक किसी लड़की की शादी नहीं होती, तब तक उसे घर में एक बच्ची की तरह बड़े लाड-दुलार से पाला जाता है। परन्तु, विदाई के वक्त अचानक से वह बड़ी लगने लगती है और उसकी माँ उसे सही गलत समझाने में लग जाती है।
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NCERT Solutions for Chapter 8: कन्यादान
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Chapter 10: नेताजी का चश्मा
Chapter 11: बालगोबिन भगत
Chapter 12: लखनवी अंदाज़
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Chapter 14: एक कहानी यह भी
Chapter 15: स्त्री-शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन
Chapter 16: नौबतखाने में इबादत
Chapter 17: संस्कृति
Check out Frequently Asked Questions (FAQs) for Chapter 8: कन्यादान
'कन्यादान’ कविता में वस्त्र और आभूषणों को शाब्दिक-भ्रम क्यों कहा गया है?
स्त्री के जीवन में वस्त्र और आभूषण भ्रमों की तरह हैं अर्थात् ये चीजें व्यक्ति को भरमाती हैं। ये स्त्री के जीवन के लिए बंधन का काम करते हैं। और जिस प्रकार चतुर व्यक्ति अपनी लच्छेदार भाषा और मोहक शब्दावली से ही भोले इंसान को अपना गुलाम बना लेता है वैसे ही पुरुष से प्राप्त वस्त्र और आभूषणों के लालच में अथवा उन्हें लेकर आसक्त होने से स्त्री भ्रमित हो जाती है और वह पुरुष की दासी बन जाती है। ससुराल में अच्छे वस्त्राभूषणों के मोह में स्त्री प्राय: दासतामय बन्धन में पड़ जाती है इसलिए वस्त्राभूषणों को शाब्दिक भ्रम कहा गया है।
'कन्यादान’ कविता नारी को कैसे सचेत करती है?
सामाजिक व्यवस्था के तहत स्त्रियों के प्रति जो आचरण किया जा रहा है | उसके चलते अन्याय न सहन करने के लिए सचेत किया गया है क्योंकि समाज में लड़कियों के साथ में इतना अन्याय होता है कि वह उनको चुपचाप चारदीवारी के अंदर ही सहकर घुट घुट कर अपना जीवन जीती हैं।
लड़की जैसी दिखाई मत देना’ से कवि का क्या आशय है?
'लड़की जैसी दिखाई मत देना’ से कवि का आशय है कि समाज-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए जो प्रतिमान गढ़ लिए गए हैं, वे आदर्शों के आवरण में बंधन होते हैं। लोग स्त्रियों की कोमलता को कमजोरी समझते हैं। माँ के माध्यम से कवि ने लड़की को सलाह दी है कि उसे लड़कियों के विशेष गुण शालीनता, विनम्रता आदि तो धारण करने चाहिए परन्तु लड़कियों को कमज़ोर, अबला या असहाय प्रदर्शित करने वाले कार्यों या भावों से बचना चाहिये। उसे खुद को कमज़ोर नहीं दिखाना चाहिए।
‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को क्या-क्या सीखें दीं?
- कभी अपने रूप-सौंदर्य पर गर्व न करे।
- वह अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करे, कभी भी कमजोर बन कर आत्मदाह न करे।
- वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रम और बंधन हैं, अत: उनके मोह में न पड़े।
- लड़की की कोमलता व लज्जा आदि गुणों को अपनी कमजोरी न बनने दे।
- अपना सौम्य व्यवहार बनाए रखे।
- ससुराल में गलत व्यवहार का विरोध करे।
- अपनी और अपने परिवार की मरियादा को बनाए रखे।
- आग रोटियां सेंकने के लिए है ना जलने के लिए।
'उसे सुख का आभास तो होता था, लेकिन दुःख बाँचना नहीं आता था’, ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
माँ अपनी बेटी के बारे बतातीं है कि उसे अभी सांसारिक व्यवहार का, जीवन के कठोर यथार्थ का ज्ञान नहीं था। बस उसे वैवाहिक सुखों के बारे में थोड़ा-सा ज्ञान था। जीवन के प्रति लड़की की समझ सीमित थी अर्थात् वह विवाहोपरांत आने वाली कठिनाइयों से परिचित नहीं थी। साथ ही वह समाज के छल-कपट को समझ नहीं सकती।