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कबीर ने प्रस्तुत साखियों में दैनिक जीवन के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को अभिव्यक्त किया है । उन्होंने मधुर वचन के महत्त्व , मनुष्य की प्रवृत्ति , प्रेम के महत्त्व , आलोचकों की उपयोगिता आदि को विशेष रूप से उजागर किया है , साथ ही अहंकार के त्याग , प्राणी मात्र से प्रेम , सांसारिक सुखों और वासनाओं के त्याग पर भी बल दिया है ।
कबीर ने ईश्वर के प्रति प्रेम की उस प्रक्रिया को भी प्रदर्शित किया है , जिसके विरह में साधक का जीवन निरर्थक हो जाता है । उन्होंने स्पष्ट किया है कि सांसारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए सांसारिक सुख – सुविधाओं का त्याग कर , प्राणी मात्र से प्रेम करना होगा । इस प्रकार , प्रस्तुत साखियों के माध्यम से कबीर ने जन – सामान्य को सीख देने का प्रयास किया है ।
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कस्तूरी मृग की नाभि में होती है, पर मृग को इस विषय में ज्ञान न होने के कारण वो उसे पूरे वन में तलाशता है |
मीठी वाणी से सुनने वाले तथा बोलने वाले दोनों को ही सुख मिलता है इसलिए सदा मीठी वाणी बोलनी चाहिए |
कबीर की साखियाँ हमें जहाँ व्यावहारिक ज्ञान देती हैं, वहीं हमें जीवन मूल्यों से भी परिचित करवाती हैं | ईश्वर कहीं और नहीं बल्कि मनुष्य के ह्रदय तथा संसार के कण-कण में बसता है इसलिए उसकी प्राप्ति के लिए कर्मकांडों,आडम्बरों की नहीं , सच्ची भक्ति की आवश्यकता होती है | ऐसी जीवनोपयोगी शिक्षाएँ हमें कबीर की साखियों से मिलती हैं |
विरह एक ऐसे सर्प के सामान है जो अगर किसी को जकड ले,तो उसे कोई मात्रा भी मुक्ति नहीं दिला सकता | ईश्वर की विरह में भक्त भी या तो प्राण त्याग देता है या विक्षिप्त (पागल) हो जाता है |
कबीर कहते हैं कि निंदक को अपने आँगन में कुटिया बनवाकर रखना चाहिए |