रवींद्रनाथ ठाकुर की प्रस्तुत कविता का बांग्ला से हिंदी में अनुवाद आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने किया है । द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अपूर्व योगदान है ।
प्रस्तुत कविता में कवि गुरु मानते हैं कि प्रभु में सब कुछ संभव कर देने की सामर्थ्य है , लेकिन वही सब कुछ न करें । किसी भी आपदा – विपदा में , किसी भी द्वंद्व में सफल होने के लिए मनुष्य स्वयं संघर्ष करे । प्रभु केवल उसे संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करें ।