प्रस्तुत दोहों में बिहारी ने लोक व्यवहार , नीति ज्ञान आदि विषयों पर लिखा है । संकलित दोहों में सभी प्रकार की छटाएँ हैं । इन दोहों में बिहारी ने भक्ति में निहित बाह्य आडंबरों का खंडन किया है तथा नायक – नायिका की चेष्टाओं तथा हाव – भाव का चित्रण सामासिक शैली में किया है । इन दोहों में उन्होंने कम शब्दों में अधिक बात कहने का सामर्थ्य दिखाया है । बिहारी के यह दोहे ‘ गागर में सागर ‘ भरने का काम करते हैं ।
Source: safalta.com
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गोपियाँ जान-बूझकर उनकी बाँसुरी छिपा देती हैं| जब कृष्ण बाँसुरी के विषय में पूछते हैं तो गोपियाँ साफ़ इंकार कर देती हैं और सौगंध लेते हुए मुकर जाती हैं|
मन काँच की तरह क्षण भंगुर होता है जो व्यर्थ में ही नाचता रहता है। माला जपने से, माथे पर तिलक लगाने से या हजार बार राम राम लिखने से कुछ नहीं होता है। इन सबके बदले यदि सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जाए तो वह ज्यादा सार्थक होता है।