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प्रस्तुत पद ‘ मीरा ‘ के आराध्य देव ‘ श्रीकृष्ण ‘ को संबोधित हैं । पहले पद में मीरा ने श्रीकृष्ण को अपना संरक्षक मानकर उनसे प्रार्थना की है कि मेरे कष्टों को भी दूर करके मेरी रक्षा करो । दूसरे पद में मीरा , श्रीकृष्ण के समीप सेविका बनकर रहना चाहती हैं , ताकि वह सुबह उठकर प्रभु कृष्ण के दर्शन कर सकें । वह दिन – रात उनका स्मरण करते हुए , उनकी लीलाओं का गुणगान करते हुए भगवान की आराधना (भक्ति) में लीन हो जाना चाहती हैं । तीसरे पद में मीरा ने श्रीकृष्ण के रूप – सौंदर्य का वर्णन किया है । वह श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए इतनी व्याकुल हैं कि कृष्ण को यमुना नदी के किनारे दर्शन देने के लिए पुकारती हैं । इस प्रकार इन सभी पदों में मीरा अपने आराध्य देव से मनुहार भी करती हैं , लाड़ भी लड़ाती और अवसर आने पर उलाहना देने से भी नहीं चूकतीं । वह उनकी क्षमताओं का गुणगान करती हैं , तो उन्हें उनके कर्तव्य याद दिलाने में भी देर नहीं लगाती हैं।
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मीराबाई ने कृष्ण के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहा है कि उनके गले में वनफूलों से बनी हुई माला सुशोभित हो रही है | वे पीले वस्त्र पहनकर मुरली बजाते हुए गाय चरा रहे हैं |
- वह कृष्ण के नित्य दर्शन पा सकेंगी|
- वह चाहती हैं कि वृन्दावन की गलियों में कृष्ण की लीला का यशोगान करें |
- उनकी तीसरी और अंतिम इच्छा है कि किसी प्रकार उन्हें श्रीकृष्ण की भक्ति प्राप्त हो जाए |
भक्त की रक्षा हेतु भगवान ने नरसिंह अवतार लिया था |
उन्होंने अपने पदों में कृष्ण से मिलने की अधीरता को व्यक्त किया है जो भक्त की स्थिति को दर्शाती है |
वृन्दावन में कृष्ण का भव्य और ऊँचा महल है| वह इस महल के बीचों –बीच सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनाना चाहती हैं ताकि जब कृष्ण वहाँ आएँ तो इन फूलों से सजी फुलवारी को देखकर खुश हो जाएँ और मीरा उनके इस मोहित कर देने वाले रूप के दर्शन कर सकें |